शब-ए-कदर में बंदों की तकदीर का फैसला
रमजान शरीफ का हर पल शबाब और नेकी बटोरने का है।
गोपालगंज : रमजान शरीफ का हर पल शबाब और नेकी बटोरने का है। इस माह में अच्छे कामों का शबाब कई गुना बढ़ा दिया जाता है। इस माह का आखिरी अशरा यानि दस दिन गुनाहों से निजात का होता है। जहन्नुम की आग को बंदा अपने नेक अमल से बुझा सकता है। इस माह मे नेक अमाल में एत्तेकाफ शब-ए-कदर की बेदारी यानि इस रात में जग कर रात भर इबादत करना सदका-ए-फितर की अदायगी और पूरे माह के रोजे,अगर कोई बंदा रखता है तो वह बहुत बड़ा खुशनसीब है।
स्थानीय दरगाह शरीफ के इमाम कहते हैं कि एत्तेकाफ का पहला मतलब यह है कि बंदा अपनी परेशानी को अपने रब की चौखट पर रख देता है और दस दिनों के लिए दुनिया से बिल्कुल अलग-थलग होकर अपने रब को राजी करने में लग जाता है। अल्लाह पाक ने भी फरमाया है कि एत्तेकाफ करने वाले का उठना-बैठना, सोना-जागना सब इबादत में शुमार किया जाएगा। एक हदीश-ए-कुरेशी में है कि रोजे मेहसर के दिन परवरदिगार बंदों से कहेगा कि मैं भूखा था, प्यासा था और रोगी था तूने मेरी देख-भाल न की, मुझे खिलाया-पिलाया नहीं तो बंदा जवाब देगा कि या अल्लाह तू तो खाने-पीने, बीमार होने से दूर है तो अल्लाह का फिर जबाब होगा कि अगर तू अपने पड़ोस के गरीबों की यतीमों, मिस्किनों की सहायता करता तो मुझे सहायता करता। मदरसा में पढ़ने वाले गरीब छात्र-छात्राएं रमजान शरीफ की जकात और सदका-ए-फितर का जरुरतमंद है। एक हदीश में खुलासा है कि शब-ए-कदर भी इसी आखिरी आसरा कि सत्ताईसवीं रात को आती है। अगर कोई रोजेदार इस रात को इबादत में गुजार दे तो कुरान शरीफ की तिलावत करे, दरुद ज्यादा से ज्यादा पढ़े और नफील नमाज में मशगूल रहे यही शब-ए-कदर की इबादत का तरीका है। एक हदीश में आता है कि कदर ही से अरबी भाषा में तकदीर बनी है यानि इस रात में तकदीर का भी फैसला किया जाता है।