झारखंड से मंगाए गए दो लाख सूप और दउरे
नीरज कुमार, गया सूप और दउरा के लिए पड़ोसी राज्य झारखंड पर आश्रित रहना पड़ता है। सूप आ
नीरज कुमार, गया
सूप और दउरा के लिए पड़ोसी राज्य झारखंड पर आश्रित रहना पड़ता है। सूप और दउरा को झारखंड से मंगाकर गयाजी में बेचा जाता है। इस बार कार्तिक छठ में बेहतर कारोबार होने की उम्मीद है। एक व्यापारी की मानें तो छठ में एक-एक लाख सूप और दउरा की बिक्री का अनुमान लगाया गया है।
लोक आस्था और विश्वास का पर्व छठ को लेकर श्रद्धालु अपने-अपने स्तर से खरीदारी कर रहे हैं। इस पर्व में बांस से बने दउरा और सूप का एक अलग महत्व है। भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के लिए ज्यादातर छठव्रती बांस से बने सूप का ही उपयोग करते हैं। जानकार कहते हैं कि छठ पर्व में प्रत्येक वर्ष नया सूप और दउरा का उपयोग करने की मान्यता है। इस कारण से इसकी बिक्री अधिक होती है।
कहां से आता है सूप और दउरा
गयाजी के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में सूप और दउरा का निर्माण होता है, लेकिन उसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है। जानकार यह भी बताते हैं कि यहां बांस का उत्पादन नहीं होता है। लेकिन पड़ोसी राज्य झारखंड में बांस का बेहतर उत्पादन होता है। इस कारण से वहां बांस से कई तरह के सामान तैयार किए जाते हैं। छठ को लेकर सूप और दउरा तैयार किया जाता है। झारखंड के हंटरगंज, चतरा एवं प्रतापपुर से सूप और दउरा मंगाया गया है। इसे ग्राहक ज्यादा पंसद करते हैं।
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हैंड मेकिंग पर नहीं
लगता कोई टैक्स
यह एक ऐसा व्यवसाय है, जो पूरी तरह हैंड मेकिंग है। इसमें मशीन का कोई काम नहीं होता है। झारखंड राज्य में सैकड़ों परिवार सूप और दउरा के निर्माण में लगे रहते हैं। हैंड मेकिंग होने के कारण सरकार की ओर से इस पर कोई टैक्स नहीं लगाया गया है।
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पहले की तुलना में
कारोबार बढ़ा
व्यापारी कृष्ण कुमार कहते हैं, वैसे तो आम दिन भी दउरा की बिक्री होती है, लेकिन छठ में सूप और दउरी की बिक्री अधिक होती है। आज से कुछ वर्ष पहले सूप और दउर का बेहतर कारोबार होता था। उस समय गयाजी से दिल्ली और बिहार के भागलपुर व नवादा सहित कई जिले में सूप और दउर भेजा जाता था। लेकिन अब इन क्षेत्रों में गया से सूप और दउरा नहीं भेजा जाता है।
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लाखों का कारोबार
थोक विक्रेता रविंद्र शर्मा का कहना है कि यहां के प्रमुख मंडी में सूप और दउरा के दर्जनों अस्थायी दुकानें लगाई गई हैं। इस बार छठ में करीब एक-एक लाख सूप और दउरा की बिक्री होने का अनुमान लगाया गया है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग बदलते जमाने के अनुसार बांस के बने सूप की जगह पीतल की सूप से भी अर्घ्य देने लगे हैं। हालांकि, अधिकांश श्रद्धालु बांस के बने सूप से ही अर्घ्य देते हैं। इस वजह बिक्री अधिक होती है।