नामांकित छात्रों के बैठने के लिए जगह नहीं
गया। विभाग के स्थापना को तीन दशक से अधिक का समय बीत गया। लेकिन विभाग में स्वीकृत पद के अनुसार शिक
गया। विभाग के स्थापना को तीन दशक से अधिक का समय बीत गया। लेकिन विभाग में स्वीकृत पद के अनुसार शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति नहीं हुई। आश्चर्य तो यह कि विभाग के स्थापना काल में राजनीति विज्ञान के विद्वान प्राध्यापक प्रो. केएल जुलका को प्रभारी विभागाध्यक्ष बनाया गया। उसके बाद प्रो. सुरेश प्रसाद लंबे समय तक विभागाध्यक्ष के पद पर काबिज रहे। क्योंकि विभाग में वे इकलौते शिक्षक थे। लंबे समय तक विभाग में राजनीति विज्ञान व मनोविज्ञान विभाग के शिक्षक गेस्ट फैकेल्टी के तहत क्लास लेते रहे। फिलवक्त भी विभाग का हाल वैसा ही है। इकलौते शिक्षक प्रो. प्रमोद कुमार चौधरी विभागाध्यक्ष के पद पर काबिज हैं। दो अंशकालिक शिक्षक के भरोसे क्लास संचालित है। स्वीकृत शिक्षकों का पद 10 है। विभाग में संसाधन का आलम यह है कि अगर नामांकित सारे छात्र क्लास में उपस्थित हो जाएं, तो उन्हें बैठने की जगह नहीं मिल पाएगी। दो क्लास रूम है। सेमिनार हॉल नहीं है।
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बाहर से मंगवाया जाता जनरल
विभाग में समृद्ध पुस्तकालय है। यहां एक हजार से अधिक पुस्तकें है। जो पाठ्यक्रम व शोध से संबंधित है। लेकिन देखरेख के लिए पुस्तकालयाध्यक्ष का पद रिक्त है। पुस्तकालय के देखरेख की जिम्मेवारी अंशकालिक शिक्षक पर है। विभागाध्यक्ष प्रो. चौधरी कहते हैं कि पुस्तकालय में पुस्तकों की खरीद और जनरल आना बंद है। लेकिन छात्रों व शोधार्थियों के लिए बाहर से जनरल मंगवाते हैं। ताकि छात्रों व शोधार्थियों को काम आए। कमरे के अभाव में पुस्तकालय का पुस्तकों से भरा आलमिरा विभागाध्यक्ष के कक्ष में सजाकर रखा गया है। विभाग में गत वर्ष पीएचडी अभ्यास वर्ग के छात्रों के लिए एक राष्ट्रीय सेमिनार कराया गया था।
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स्पेशल पेपर की पढ़ाई है प्रभावित
शिक्षकों की कमी के कारण विषय से संबंधित स्पेशल पेपर की पढ़ाई प्रभावित है। विभागाध्यक्ष प्रो. चौधरी कहते हैं कि स्पेशल पेपर में राजनीति समाजशास्त्र और अपराध शास्त्र, सामाजिक मानव विज्ञान, सामाजिक मनोविज्ञान आदि की पढ़ाई पहले होती थी। लेकिन अब शिक्षकों की कमी के कारण प्रभावित है। विभाग के तीन शोधार्थियों को शोध कार्य के लिए राजीव गांधी नेशनल फैलोशिप मिल रहा है।
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कहते हैं विभागाध्यक्ष
विभागाध्यक्ष प्रो. पीके चौधरी कहते हैं कि विभाग में पूर्व भी शिक्षकों की कमी रही है। लेकिन कई पूर्वती छात्र विभिन्न विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में प्राध्यापक व प्रशासनिक पदों पर काबिज हैं। छात्रों की कम उपस्थिति पर वे कहते हैं कि क्लास नहीं करने वाले छात्रों को पत्राचार व फोन कर यह बताया जाता है कि 75 प्रतिशत उपस्थित नहीं होने की स्थिति में परीक्षा फार्म भरने से वंचित कर दिया जाएगा। लेकिन भय यह भी बना रहता है कि अगर नामांकित छात्रों में 25 प्रतिशत की भी उपस्थिति हो गई। तो उन्हें बैठाएंगे कहां?