सृष्टि के संरक्षण के लिए वैदिक गणित बहुमूल्य: निश्चलानंद सरस्वती
फोटो 66 सीयूएसबी में वैदिक गणित का स्वरुप एवं उसकी प्रासंगिकता पर जगद्गुरु शकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने दिए व्याख्यान संवाद सहयोगी टिकारी
गया। जीवन और जगत में वैदिक गणित की महत्ता और आवश्यकता पर जगद्गुरु स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का व्याख्यान सबको सम्मोहित कर गया। प्रकृति नाशक विकास और भोगवादी प्रवृत्ति को उन्होंने सृष्टि के लिए घातक बताया। कहा कि वैदिक गणित के सूत्रों पर अमल से ही सृष्टि का संरक्षण संभव है। वैदिक गणित बहुमूल्य है। बुधवार को दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के परिसर में वैदिक गणित का स्वरूप और उसकी प्रासंगिकता विषयक व्याख्यान का आयोजन हुआ। जगद्गुरु मुख्य वक्ता रहे। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि संपूर्ण विश्व भौतिक उत्कृष्टता और काल्पनिक विकास की तरफ तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इसके कई दोष हैं। कहीं न कहीं हम सृष्टि को नष्ट करने की दिशा में अग्रसर हैं। भौतिकवादियों के चंगुल से विश्व को अगर मुक्त नहीं कराया गया तो कुछ दशकों में विश्व की समाप्ति हो जाएगी। समय आ गया है कि हम वैदिक गणित में दिए गए सिद्धातों को अपने जीवन में अपनाएं, तभी इस सृष्टि को भौतिकवादियों से बचाया जा सकता है। वैदिक गणित की विशेषताओं का जिक्र करते हुए जगद्गुरु ने श्रीमद्भगवद्गीता, वेद और अन्य धार्मिक ग्रंथों के संदर्भ को साझा किया। बताया कि वैदिक गणित में 16 सूत्र और 22 उपसूत्र हैं, जो देश-दुनिया के लिए काफी प्रासंगिक हैं। विश्व में किसी भी तरह का विज्ञान हो, उसमें वैदिक गणित के सूत्रों का प्रयोग होता है। यही नहीं, अंतरिक्ष विज्ञान में भी इसका उपयोग होता है। यह जानकर आश्चर्य होगा कि कंप्यूटर भी वैदिक गणित पर आधारित है। उन्होंने अपने व्याख्यान में मानव जीवन में नींद की आवश्यकता और उसके व्यापक पहलुओं पर प्रकाश डाला। वैदिक गणित, समकालीन गणित और विज्ञान के कई तथ्यों को साझा किया। उस दौरान उन्होंने न्यूटन द्वारा गुरुत्वाकर्षण पर दिए गए सिद्धातों का भी जिक्र किया। विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी मुदस्सिर आलम ने बताया कि कुलाधिपति डॉ. सीपी ठाकुर, कुलपति प्रो. हरीशचंद्र सिंह राठौर और डॉ. इंदिरा झा ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। गणित विभाग के अध्यक्ष प्रो. हरेकृष्ण निगम ने कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। मंच का संचालन डॉ. सुधाशु कुमार झा और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. आतिश पराशर ने किया।