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गया में छत्तुबाग का अनोखा कुंआ, चारों ओर खारे पानी के बीच मीठे पानी का राज अब भी रहस्‍य

गया से सात किमी दूर दशकों पुराना यह पुराना कुंआ छतुबाग में मीठे पानी का एकमात्र श्रोत है। आश्‍चर्य यह कि यहां हर घर के चापाकल से खारा पानी निकलता है। 200 घर के यादव टोली में 50 फीट पर पानी मिलता लेकिन इस कुंआ में मात्र 12 फीट पर।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Sun, 31 Oct 2021 02:25 PM (IST)Updated: Sun, 31 Oct 2021 02:25 PM (IST)
इस ऐतिहासिक चुंआ में 12 फीट पर ही लबालब पानी मिलता। जागरण फोटो।

गया, विनय कुमार पांडेय। जिला मुख्यालय से सात किमी. दूर नगर प्रखंड का छत्तुबाग गांव। यहां के चुंआ (कुंआ) पर सुबह से शाम तक भीड़ रहती है। गांव के पश्चिम में यादवटोली है।  टोला के ज्यादातर परिवार के लिए पानी यहीं से जाता है। इसका पानी बहुत ही मीठा है। शीतल इतना कि गला तर कर दे। घरों में लगे चापाकल व नल का पानी सामान्य रूप से खारा है। जिससे खाना ठीक से नहीं बनता। ऐसे में चावल-दाल बनाने के लिए सभी घरों में इसी चुंआ का पानी पहुंचता है। शादी-विवाह या पूजा पाठ। हर मौके पर इसकी मान बढ़ती है।

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70 साल की शांति बोलीं- जब बहू बनकर आई थी तो गबड़ानुमा था अब हुआ घेरावा

घर के दरवाजे पर बैठीं 70 वर्षीय शांति देवी जब यहां बहू बनकर आईं उसी समय से वह चुंआ पर लोगों को पानी लेते देख रही हैं। कहती हैं पहले यह गबड़ानुमा (गड्ढानुमा) था। बाद में घेरावा बना। पानी बहुत ही मीठा है। इधर, कुंआ के पानी से हाथ-मुंह धाेकर लौटीं 75 साल की गंगिया देवी बताती हैं कि इसी चुंआ से लोगों की प्यास बुझती है। चूल्हे पर पक रहा चना व अरहर की दाल मीठे पानी में तुरंत तैयार हो जाता है। कुएं की गहराई 20 फीट है। जिसमें 12 फूट पानी है। जबकि  घरों में 120 से 150 फीट बोरिंग कराने पर पानी मिलता है। इस चुंआ का रहस्य कोई नहीं जानता। जानते हैं तो बस इसकी ठंडी तराबट व मिठास।

आषाढ़ से ही लबालब भर जाता है चुंआ, गांव का नल-जल शोभामात्र

आषाढ़ से ही इसमें लबालब पानी रहता है। बरसात में तो इसका पानी और ऊपर ही आ जाता है। बाल्टी में रस्सी लगाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। मई-जून में इसका पानी काफी कम जाता है। लेकिन बाल्टी दो बाल्टी पानी मिल ही जाता है। करीब 200 घरों में इस चुंआ से पानी पहुंचता है। गांव के युवा बजरंगी कुमार, रौशन कुमार, पिंटू कुमार दरवाजे पर लगेनल को दिखाते हैं। जिसमें अब तक पानी ही नहीं आया। साल भर से नल-जल का पाइप बिछा हुआ है। गांव की महिलाएं व्यवस्था को कोसती हैं। कहती हैं सिर्फ दिखाने के लिए नल लगाकर छोड़ दिया। यह चुंआ ही एकमात्र सहारा है।


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