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बाजार में बचपन: पलक झपकते ही बच्चों पर कहर बन टूटता था यह दरिंदा

गरीबी की वजह से मां-बाप छोटे-छोटे बच्चों को बेच देते हैं जो घर से दूर किसी कारखाने में काम करते हैं। वहां से छुड़ाए गए बच्चों ने जो बात बताई वो हैरान करने वाली थी।

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 08 Jun 2018 03:20 PM (IST)Updated: Fri, 08 Jun 2018 11:37 PM (IST)
बाजार में बचपन: पलक झपकते ही बच्चों पर कहर बन टूटता था यह दरिंदा

गया [अश्विनी]। जो भूख बच्चों को पढऩे-खेलने की उम्र में फैक्ट्रियों का मजदूर बना देती है, उस बचपन से देश के किस यौवन की कल्पना की जा सकती है? जिस पीढ़ी के हाथों आने वाला कल हो, वह दो रोटी के लिए सुबह से रात तक हाड़ तोड़ मेहनत करने को मजबूर। न करे तो पिटाई। 

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उन्हें पीटने वाला शेरू कौन है? ऐसे दरिंदों की असलियत सामने क्यों नहीं आती? ऐसे शेरुओं के तार बिहार ही नहीं, झारखंड, पश्चिम बंगाल से लेकर पूर्वाेत्तर राज्यों तक जुड़े हैं। इसकी गवाही गया के डोभी इलाके का रोता-कलपता एक बच्चा ही दे रहा, जो जयपुर से छुड़ाकर लाया गया था।

वह बार-बार यही कह रहा था अब वहां कभी नहीं जाएगा। उसका मालिक शेरू सुबह छह बजे से रात बारह बजे तक काम कराता था। खाने में दो वक्त दो-दो तंदूरी रोटी। सो जाने पर दांतों से काट लेता था। बहुत मारता था। बच्चों की यह दुर्दशा की जाती है। बच्चे छुड़ाकर तो लाए जाते हैं, पर उन्हें फॉलो नहीं किया जाता है। दलाल फिर आते हैं और उसके डरा-धमका कर ले जाते हैं। वह बच्चा उस नर्क में दुबारा पहुंचा था। 

लाइनर ने ढूंढ ली है नई तरकीब 

बच्चों की खरीद-फरोख्त के धंधे में स्थानीय स्तर पर लाइनर शामिल होता है। ये अब बच्चों के मां-बाप को भी साथ ले जाते हैं, ताकि ट्रेन में दिक्कत नहीं हो। वे फैक्ट्री के गेट तक जाते हैं। बस! इसके बाद बच्चा परिजनों से दूर। प्रशासन का भी मानना है कि ट्रैफिकिंग में गरीबी तो कारण है ही, जागरूकता का भी अभाव है।

ट्रेंड भी थोड़ा चेंज हुआ है, क्योंकि दलालों ने इलाके बदले हैं। दस साल पहले तक ट्रैफिकिंग का प्रतिशत बांग्लादेश के सीमावर्ती जिलों में ज्यादा था। अब वहां कम हो गया है, मगध क्षेत्र में बढ़ गया है। अमूमन हर माह सौ बच्चों की ट्रैफिकिंग तो होती ही है। 

कहा-जिलाधिकारी ने 

चाइल्ड ट्रैफिकिंग एक बड़ा मुद्दा है। इसके कई कारण हैं। मां-बाप भी खुद ही बच्चों को दलालों के हवाले कर देते हैं। इन्हें रोकने की कोशिश हो रही है। हमलोग बच्चों के पुनर्वास पर गंभीर हैं। पुलिस के साथ मिलकर इसके नेटवर्क को ध्वस्त करने की योजना बन रही है, ताकि बच्चों की ट्रैफिकिंग नहीं हो। इस पर काफी नियंत्रण भी हुआ है और बच्चे छुड़ाकर लाए जा रहे हैं।

-अभिषेक सिंह, जिलाधिकारी, गया  

कहा-बाल कल्याण समिति के सदस्य ने 

जो बच्चे श्रम के लिए ले जाते वक्त पकड़े जाते हैं उनके पुनर्वास के लिए कोई प्रावधान नहीं है। इन्हें छुड़ा भी लिया जाता है तो फिर से ट्रैफिकिंग की संभावना रहती है। जो बाल श्रम से मुक्त कराकर लाए जाते हैं, उनके लिए पुनर्वास की व्यवस्था है, इस पर गंभीरता से ध्यान देना होगा। 

-डॉ. शिवदत्त कुमार, सदस्य, बाल कल्याण समिति, गया। 

कहा-एनजीओ कीअध्यक्ष ने 

चाइल्ड ट्रैफिकिंग को प्राथमिकता सूची में लाना होगा। सबसे बड़ा सवाल बच्चों के पुनर्वास का है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर कल्याण हर विभाग शामिल हैं। इसमें को-आर्डिनेशन के साथ जब तक काम नहीं किया जाएगा, बच्चों के दलालों को खाद-पानी मिलता रहेगा। 

-ऋतु प्रिया, अध्यक्ष, एक किरण आरोह

जंक्शन रेस्क्यू टीम की को-अॉर्डिनेटर ने बताया-

गरीबी सबसे बड़ा फैक्टर है। दलालों की नजर ऐसे परिवार पर ही होती है। दलाल पकड़ाता है तो उसके खिलाफ कोई गवाही देने को तैयार नहीं होता। ग्रासरूट लेवल पर आधारभूत संरचना की जरूरत है, ताकि बच्चे को कोई मां-बाप अपने पास से जाने न दे। 

रिया कुमारी, को-आर्डिनेटर, रेस्क्यू जंक्शन


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