प्रकृति के करीब रहें और करें अच्छे कर्म, बढ़ेगा मान-सम्मान और मिलेगा बेहतर परिणाम - बद्रीनाथ
रोहतास जिले के डेहरी के नारायणपुर गांव में चल रहे ज्ञान महायज्ञ में गुरुवार की रात बद्रीनाथ वानमली जी ने कर्मपथ पर चलने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि अगर बेहतर कर्म करेंगे तो परिणाम बेहतर आएंगे ही।
संवाद सहयोगी, डेहरी ऑन सोन (रोहतास)। अगर कर्म सही है, तो परिणाम भी सही ही होगा। अगर परिणाम उचित नहीं आया तो इसका स्पष्ट मतलब है कि कर्म में कमी रह गई। इसलिए काम करें तो उसमें समर्पण रखें। परिणाम तो बढिया आएगा ही। प्रवचन के दौरान डेहरी के नारायणपुर गांव में श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज के सानिध्य में चल रहे ज्ञान महायज्ञ में गुरुवार की रात बद्रीनाथ वानमली जी ने ये बातें कही।
मानव जीवन में प्रेम और भाव का बहुत महत्व
उन्होंने कहा कि मानव में अगर जन्म लिए है, तो आप अन्य जीवों से अलग है । मानव जन्म ही सर्व कल्याण और ईश्वर भक्ति के लिए हुआ है। उन्होंने कहा कि मानव संवेदनायुक्त और भाव से परिपूर्ण होता है। ज्ञान अगर भाव रहित हो तो उससे समाज व राष्ट्र हित नहीं हो पाता। अगर भाव सहित हो तो वह मानव का मान सम्मान और संबंध सब में वृद्धि करता है। इसलिए जीवन में प्रेम भावना और भाव का बड़ा महत्व है। यही हमें समाज, परिवार और राष्ट्र में सम्मान दिलाते हैं। यही तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र चित्रण की जानकारी ग्रहण करने से मिलता है। उन्होंने कहा कि प्रकृति से आपका जितना लगाव है, आप परमात्मा के उतने करीब हैं। क्योंकि प्राकृतिक रचना ईश्वर की सबसे सुंदर रचना है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने प्रकृति के निकट रहकर ही मानव को बेहतर जीवन जीने की जानकारी दी है। परमात्मा, प्रकृति और आत्मा तीनों की समानांतर रेखा बन जाए तो आनंद की अनुभूति होती है। आनंद ही सच्चिदानंद है ।
प्रकृति के करीब रहें, यही तो ईश्वर है
परमात्मा द्वारा रचित रात-दिन, सुबह-शाम, सबकुछ मानव और जीव के अनुरूप बनाया गया है। इसीलिए कहा जाता है कि परमात्मा प्रकृति के अनुकूल है प्रतिकूल नहीं। ईश्वर दिखावे में नहीं देखने में है। जो जीव जिस स्थल और जिस मौसम और काल में रहता है, प्रकृति उसकी शारीरिक बनावट उसी के अनुरूप करती है ताकि उसे इस प्रकृति में जीवन जीने और कार्य करने में समस्या उत्पन नहीं हो। कछुआ जितना अंदर से कोमल होता है उसके कोमल शरीर की सुरक्षा के लिए प्रकृति ने उसके शरीर के ऊपर उतना ही कठोर आवरण बनाया है। नीलगाय जंगल में रहती है पालतू गाय घर में। दोनों के शारीरिक संरचना में अंतर होता है। ठंड का प्रकोप नीलगाय पर कम और पालतू गाय पर अधिक होता है। प्रकृति की संरचना मानव समझ से परे है। आप जितना प्रकृति अर्थात ईश्वर के करीब होंगे उतना ही उसकी संगरचना को समझेंगे।