सुलह कराने गए आए गांधीजी भर गए थे आजादी की हुंकार
- शेरघाटी में आए थे बापू जाते समय स्वीकार नहीं किए चांदी के हजार सिक्के ................
कौशलेंद्र कुमार, शेरघाटी (गया): स्वतंत्रता आदोलन को तेज करने और दो समुदायों के बीच सुलह कराने के लिए महात्मा गाधी शेरघाटी भी आए थे। आजादी के पूर्व यहां दो जमींदार हुआ करते थे। हिदू में बाबू डोमनलाल गुप्ता और मुस्लिम में डिप्टी उच्जैर साहब। 70 वर्षीय शंभु प्रसाद गुप्ता बाबू डोमनलाल के परिवार से आते हैं। वे बताते हैं कि अंग्रेजी शासनकाल में भी शेरघाटी में दुर्गापूजा का भव्य आयोजन होता था। उसी जगह आज भी दुर्गास्थान है और प्रतिमा स्थापित होती है। सही-सही याद नहीं, लेकिन संभवत: वह 1932-33 का साल रहा होगा। दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के दौरान काजी मोहल्ले के समीप दोनों समुदायों में हो गई थी। तब प्रतिमा के साथ चादी का चवर और सोने की नथिया जरूर होती थी। दोनों टूट गए थे। बाबू डोमनलाल के नेतृत्व में बृजमोहन लाल, पचरतन लाल, किशुन लाल द्वारा प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। साल भर के भीतर नामजद लोगों पर कार्रवाई और नुकसान के एवज में मुआवजे के भुगतान का आदेश हुआ था। तब दोनों समुदायों में तनाव बढ़ गया था। अंतत: गांधीजी जाए और घोषणा की कि जब तक समझौता नहीं हो जाता वे शेरघाटी का अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे। आखिरकार दरबार हाउस में दोनों पक्षों की बैठक हुई और समझौता हुआ। उसके बाद गांधीजी एक दिन बाबू डोमनलाल के घर विश्राम कर अन्न-जल ग्रहण किए। उसी रात स्वतंत्रता आंदोलन को तेज करने के लिए बैठक की। अगली सुबह वर्तमान के नारायण पुस्तकालय परिसर के समीप स्वदेशी के समर्थन में विदेशी वस्त्रों को जलाकर बहिष्कार किया। दो दिन बाद वापस लौट गए। जाते समय उन्हें चादी के हजार सिक्के भेंट किए जा रहे थे, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया। सेवानिवृत्त शिक्षक विजय कुमार दत्त बताते हैं कि वह साल 1934 था। दरबार हाउस और काजी हाउस शेरघाटी के ऐतिहासिक स्थल हैं। दरबार हाउस में पंडित जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और बिनोवा भावे का भी आगमन हुआ था। शंभु प्रसाद गुप्ता बताते हैं, आज मूर्ति विसर्जन और ताजिया जुलूस का रूट भी उसी समझौते के आधार पर निर्धारित है।