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488 विद्यार्थियों के लिए महज चार कमरे

विश्वनाथ प्रसाद, मानपुर आदर्श मध्य विद्यालय शादीपुर में 488 बच्चों को पढ़ाने के लिए 16 शिक्षक

By JagranEdited By: Published: Fri, 30 Nov 2018 10:16 PM (IST)Updated: Fri, 30 Nov 2018 10:16 PM (IST)
488 विद्यार्थियों के लिए महज चार कमरे
488 विद्यार्थियों के लिए महज चार कमरे

विश्वनाथ प्रसाद, मानपुर

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आदर्श मध्य विद्यालय शादीपुर में 488 बच्चों को पढ़ाने के लिए 16 शिक्षक तैनात हैं, लेकिन बैठने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। यहां कुल सात कमरे हैं, जिनमें से तीन को जर्जर होने के कारण बंद कर दिया गया। शेष बचे चार कमरे में कक्षाएं लगती हैं। कक्षावार पढ़ाई नहीं होने से विद्यार्थियों के साथ शिक्षकों को भी परेशानी हो रही है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अभाव के कारण दिनोंदिन बच्चों की संख्या कम हो रही है।

1967 में स्थापित इस स्कूल में सुविधाओं का घोर अभाव है। पानी के लिए एक हैंडपंप है, लेकिन काफी समय से खराब है। ऐसे में बच्चों को काफी परेशानी हो रही है। चहारदीवारी नहीं होने से बच्चे खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। इतना ही नहीं, गर्मी हो या ठंडी बच्चों को जमीन पर बैठकर पढ़ना पड़ता है।

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डेढ़ किमी पैदल चलकर आने के बाद भी विद्यालय में अच्छी शिक्षा नहीं मिलती है। यहां जगह का घोर अभाव है। रूटीन के अनुसार पढ़ाई नहीं होती है।

चांदनी कुमारी, कक्षा आठ

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विद्यालय में पेयजल की काफी किल्लत है। एक चापाकल है, वह भी खराब पड़ा है। पानी पीने के लिए हमलोगों को घर ही जाना पड़ता, जिससे पढ़ाई प्रभावित होती है। अगर विद्यालय में समरसेबुल लगा दी जाए तो पेयजल की समस्या सदा के लिए समाप्त हो जाएगी।

-रानी कुमारी, कक्षा सात

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चहारदीवारी नहीं रहने की वजह से विद्यालय परिसर से होकर लोग गुजरते रहते हैं। जानवर भी घुस आते हैं। इसके कारण पठन-पाठन काफी प्रभावित हो रही है। यहां चहारदीवारी बनाने की सख्त जरूरत है।

-मोनो कुमार, कक्षा पांच

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विद्यालय में बैठने के लिए बेंच नहीं है। कुछ है भी तो एक कक्षा में ही लगी है। तीन कक्षा के बच्चों को जमीन पर ही बैठकर शिक्षा ग्रहण करना पड़ता है। ऐसे में स्कूल की वर्दी भी गंदी हो जाती है।

-पान कुमार, कक्षा छठी

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यूनिट के अनुसार विद्यालय में 16 शिक्षक हैं। चार कमरे और बरामदे में विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है। जर्जर भवन को बंद कर दिया गया है। भवन बनाने की मांग कई बार शिक्षा विभाग के अधिकारियों से की गई। दोपहर में बच्चों को भोजन बनाने की सामग्री व्यवस्था करने में ही परेशान रहते हैं। मध्यान भोजन से मुक्त कर दिया जाए तो शिक्षा में और सुधार लाई जा सकती है।

-संजय कुमार गुप्ता, प्रधानाध्यापक


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