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कोर्ट में आखिर क्यों दी जाती है तारीख-पे-तारीख, जानिए लंबित मुकदमों की वजह

देश के न्यायालयों में जजों की कमी है जिसकी वजह से न्यायालयों में काफी मुकदमे लंबित हैं। कोर्ट में लंबित मुकदमों की बात करें तो इसमें बिहार चौथे स्थान पर है। पढ़ें पूरी खबर...

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 26 Nov 2018 09:58 AM (IST)Updated: Mon, 26 Nov 2018 03:00 PM (IST)
कोर्ट में आखिर क्यों दी जाती है तारीख-पे-तारीख, जानिए लंबित मुकदमों की वजह

गया, विकाश चन्द्र पाण्डेय। तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र की हत्या में जिला अदालत का फैसला 39 साल बाद आया था। वह मामला फैसलों में देरी की एक नजीर है। इसकी कई वजहें हैं। एक वजह न्यायाधीशों की कमी है। इस कारण बिहार की अदालतों में 22.63 लाख मुकदमे लंबित हैं। 

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देश में सर्वाधिक मुकदमों वाले पांच राज्यों में बिहार चौथे पायदान पर है। उसके पीछे गुजरात। उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर। मुकदमों के इस बोझ की तकलीफ बयां करते ढाई साल पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर सरेआम फफक पड़े थे।

उन्होंने लंबित मुकदमों के निपटारे के लिए 70 हजार जजों की जरूरत बताई थी। उस सम्मेलन में प्रधानमंत्री भी मौजूद थे। दरअसल, विधि आयोग सन 1987 में ही प्रति दस लाख की आबादी पर जजों की संख्या 50 किए जाने की अनुशंसा कर चुका है। अभी देश में प्रति दस लाख आबादी पर जजों की संख्या 19.49 है। 

वर्षों से लंबित मुकदमों की बढ़ रही संख्या
इस साल सितंबर तक देश के 24 उच्च न्यायालयों में 40.3 लाख मुकदमे लंबित थे और जजों के 427 पद रिक्त। निचली अदालतों की स्थिति तो और गंभीर है। उनमें जजों के 5223 पद रिक्त हैं। निचली अदालतों में जजों के 22474 और हाई कोर्ट में 1079 पद निर्धारित हैं।

पटना हाईकोर्ट में जजों की संख्या अब तक के सर्वोच्च स्तर (35) पर है। स्वीकृत 53 पदों के विरुद्ध एक समय तो महज 26 जज थे, यानी कि तब 50 फीसद से अधिक पद खाली थे। इस कारण दस साल से अधिक पुराने मुकदमों का ग्राफ बढ़ता जा रहा। बेशक, इसकी वजहों में अभियोजन और तफ्तीश भी है। 

अधीनस्थ न्यायालयों में जजों की सर्वाधिक कमी 
पिछले दशकों में मुकदमों में 12 फीसद की बढ़ोतरी हुई, जबकि जजों की संख्या महज तीन गुनी बढ़ी। आकलन है कि 2040 तक अदालतों में 15 करोड़ मुकदमे लंबित होंगे। विधि रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में सन 2016 में कुल 1067 जज थे। दो साल से अधिक समय से लंबित मुकदमों के निपटारे के लिए 2896 जज चाहिए, जबकि सभी मामलों के निस्तारण के लिए 3581 जज।

विधि आयोग की अनुशंसा के मुताबिक बिहार में 5190 और देश में 60476 जजों की दरकार है, जबकि बिहार के अधीनस्थ न्यायालयों में जजों के 46 प्रतिशत पद खाली पड़े हुए हैं। किसी दूसरे राज्य के अधीनस्थ न्यायालयों में इतनी रिक्तियां नहीं है। इस पैमाने पर बिहार के बाद उत्तरप्रदेश (42 प्रतिशत) है। 

इंसाफ बनाम इंतजाम

 फैसलों में देरी की बड़ी वजह, करना पड़ता है लंबा इंतजार 

 देश में सर्वाधिक मुकदमों वाले राज्यों में बिहार चौथे पायदान पर, गुजरात उसके पीछे 

लंबित मामले  

साल का ब्योरा : देश में: बिहार में    

0 से 3 साल तक के : 19279623 : 1186857

3 से 5 साल तक के : 3433828 : 335485

5 से 10 साल तक के : 3819513 : 444458

10 साल से अधिक पुराने : 2178929 : 296703

लंबित पड़े कुल मामले : 28711893 : 2263503 

(25 नवंबर, 2018 तक, स्रोत: नेशनल जुडिशियल डाटा ग्रिड)

बिहार की व्यवस्था 

- 35 जज कार्यरत हैं अभी पटना हाई कोर्ट में स्वीकृत 53 पदों के विरुद्ध 

- 42 प्रतिशत पद जजों के खाली हैं बिहार के अधीनस्थ न्यायालयों में   


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