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लापरवाही: कभी भी ध्वस्त हो सकता मोहनियां का पशु अस्पताल, दीवारों में पड़ी दरारें दे रहीं गवाही

सरकारी तौर पर पशुधन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रहीं हैं। लेकिन अनुमंडल मुख्यालय स्थित सरकारी पशु अस्पताल के लिए ये योजनाएं छलावा साबित हो रही हैं। अस्पताल की बदहाली इस बात को प्रमाणित करती है।

By Prashant KumarEdited By: Published: Thu, 25 Feb 2021 09:56 AM (IST)Updated: Thu, 25 Feb 2021 10:00 AM (IST)
सासाराम के मोहनियां स्थित पशु अस्‍पताल का जर्जर भवन। जागरण।

संवाद सहयोगी, मोहनियां (सासाराम)। सरकारी तौर पर पशुधन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रहीं हैं। लेकिन, अनुमंडल मुख्यालय स्थित सरकारी पशु अस्पताल के लिए ये योजनाएं छलावा साबित हो रही हैं। अस्पताल की बदहाली इस बात को प्रमाणित करती है। राशि उपलब्ध होने के बाद भी जमीन की कमी अस्पताल के भवन निर्माण में बाधक बन रही है।

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मोहनियां का पशु अस्पताल समस्याओं से जूझ रहा है। सरकारी तौर पर पशुपालन को बढ़ावा देने व पशुपालकों की सुविधा को ध्यान में रखकर पशु अस्पतालों को साधन संपन्न कराने का दावा मोहनियां में फेल नजर आ रहा है। लंबे समय से यहां के पशु अस्पताल को उद्धारक की तलाश है। 30 जनवरी 1956 को मोहनियां में प्रखंड सह अंचल कार्यालय की स्थापना हुई थी। इसके बाद प्रखंड कार्यालय के दक्षिण तरफ जीटी रोड के समीप पशुपालन विभाग द्वारा पशु अस्पताल का निर्माण कराया गया था।

वर्ष 2006-07 में  के मवेशी अस्पताल का जीर्णोद्धार हुआ था। इसके बाद अभी तक अस्पताल की रंगाई पुताई भी नहीं हो पाई है। कई महत्वपूर्ण अवसरों पर सरकारी भवनों का रंग रोगन होता है। जिससे पुराने भवन भी चकाचक दिखने लगते हैं। लेकिन, मोहनियां के पशु अस्पताल की सुधि न तो विभाग ले रहा है नहीं प्रशासनिक पदाधिकारी। अनुमंडल मुख्यालय में जीटी रोड के बगल में अवस्थित पशु अस्पताल में प्रतिदिन काफी संख्या में पशुपालक अपने मवेशियों को लेकर आते हैं। अस्पताल के जीर्णशीर्ण भवन में पशु चिकित्सक व कर्मी कामकाज निपटाते हैं।

अस्पताल में चार कमरा व बरामदा है। इस अस्पताल को प्रथम वर्गीय पशु अस्पताल का दर्जा प्राप्त है। इसी में विभाग के सहायक निदेशक का कार्यालय भी चलता है। अस्पताल का भवन पुराना होने के दीवारों में दरारें पड़ गई हैं। नीचे की फर्श टूट कर गड्ढों में तब्दील हो गई है। अस्पताल परिसर में ही चिकित्सक व कर्मियों के रहने की व्यवस्था है। भवन की जर्जरता के बावजूद जान जोखिम में डालकर इसमें चिकित्सक व कर्मी रहते हैं। अस्पताल में पानी की व्यवस्था नहीं होने के कारण कर्मी बगल के घरों से पानी लाकर प्यास बुझाते हैं और नित्य क्रिया करते हैं। परिसर में लगा चापाकल दो वर्ष से खराब है। जिसकी मरम्मत के लिए चिकित्सक व कर्मियों ने पीएचईडी को सूचित किया। लेकिन, कोई फायदा नहीं हुआ।नगर पंचायत द्वारा नलजल का पानी भी अस्पताल में नहीं पहुंचाया गया है।

ज्ञात हो कि पशु अस्पताल की जमीन में ही कैमूर डेयरी की स्थापना हुई है। अस्पताल के समीप से चारों तरफ कैमूर डेयरी की बाउंड्री बन चुकी है। अब अस्पताल के नए भवन के लिए जमीन की कभी बाधक बन रही है। हर वर्ष इसके निर्माण के लिए सरकार द्वारा राशि उपलब्ध कराई जाती है। लेकिन, अंचलाधिकारी द्वारा जमीन उपलब्ध नहीं कराए जाने के कारण हर वर्ष राशि लौट जाती है। यहां कार्यरत चिकित्सकों द्वारा कई बार अंचलाधिकारी व वरीय प्रशासनिक पदाधिकारियों को इस संबंध में पत्राचार कर आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया गया। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

यहां वर्तमान में डॉ. रवि यहां प्रखंड पशु चिकित्सा पदाधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। पशु चिकित्सक के भी प्रभार में हैं। भ्रमणशील पशु चिकित्सा पदाधिकारी का प्रभार भी इनके ही जिम्मे है। ज्ञात हो कि पशु अस्पताल में दो पशु चिकित्सकों का पद सृजित है। जिसमें प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी व भ्रमणशील पशु चिकित्सा पदाधिकारी का पद शामिल है। लेकिन, लंबे समय से यहां एक ही चिकित्सक के जिम्मे दोनों पद है। अस्पताल में कर्मियों की कमी है। जिससे मवेशियों के इलाज में बाधा आती है। इस संबंध में पूछे जाने पर पशु चिकित्सक रवि कुमार ने बताया कि नया पशु अस्पताल बनाने के लिए सरकारी तौर पर राशि उपलब्ध होने के बावजूद जमीन के अभाव में निर्माण कार्य नहीं हो पा रहा है। कई बार अंचलाधिकारी को इस संबंध में पत्र लिखा गया। लेकिन जमीन उपलब्ध नहीं हो पाई। इसके कारण समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। अस्पताल में दवा की उपलब्धता है।पशुपालकों को इसका लाभ मिल रहा है।


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