कम उम्र के युवकों को हथियार थमा रहे नक्सली, गरीबी के का कारण टूट रहा पढ़ाई का सपना
बिहार में नक्सली अब कम उम्र के बच्चों को हथियार थमा दे रहे हैं। कम उम्र के गरीब युवक भी नक्सली बन रहे हैं। इसका खुलासा होने से पुलिस की चिंता बढ़ गई है।
By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 29 Jul 2019 10:05 PM (IST)Updated: Tue, 30 Jul 2019 10:38 PM (IST)
औरंगाबाद [जेएनएन]। बिहार में नक्सली कम उम्र के गरीब युवकों को हथियार थमा रहे हैं। नक्सली उन्हें अपनी टीम की सुरक्षा में तैनात कर रहे हैं। बीते गुरुवार को औरंगाबाद के देव के दक्षिणी इलाके के जंगल में सीआरपीएफ के कोबरा बटालियन एवं नक्सलियों के बीच मुठभेड़ में ढ़ेर तीन नक्सलियों में दो कम उम्र के थे। दाेनों के परिजनों ने कहा कि वे अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते थे, लेकिन स्कूल नहीं होने व गरीबी के कारण ऐसा नहीं कर सके। इसका फायदा नक्सलियों ने उठाया।
मुठभेड़ में मारे गए कम उम्र के दो नक्सली
गुरुवार को सीअसापीएफ से मुठभेड़ में मारे गए तीन नक्सलियों में से दो पूरे परिपक्व भी नहीं हुए थे। उनमें शामिल गया जिले के लुटुआ थाना के सोनदाहा गांव निवासी राजू उर्फ शिवसंत उर्फ बेला सिंह भोक्ता की उम्र महज 19 वर्ष थी। मारा गया दूसरा नक्सली गया जिले के लुटुआ थाना के ही नागोबार गांव का निवासी निरंजन उर्फ गोलू भोक्ता 22 वर्ष का था। इन दोनों नक्सलियों के उम्र कम होने के कारण पुलिस की चिंता बढ़ गई है। दोनों के शव लेने देव थाना पहुंचे परिजनों ने तो उनकी उम्र और कम बतायी।
बच्चों को प्रलोभन दे फंसा लेते नक्सली कमांडर
राजू के पिता बलिंद्र सिंह भोक्ता एवं गोलू के पिता नरेश भुइयां ने नम आंखों से कहा कि गांव की तरफ नक्सली आते थे तो बच्चे उनके पास चले जाते थे। आदत लगी और वे नक्सली बन गए। परिजनों ने नक्सली कमांडरों के बारे में कुछ बोलने से परहेज किया। केवल इतना कहा कि गरीबी इस तरह है कि बिना मजदूरी के घर का चूल्हा नहीं जलता है। जिस दिन मजदूरी नहीं मिलती है उस दिन भोजन की चिंता सताने लगती है। नक्सली कमांडर बच्चों को संगठन में शामिल करने के लिए कई प्रलोभन देते हैं। गरीबी के मारे बच्चे प्रलोभन में आकर जब एक बार हथियार पकड़ लेते हैं तो फिर छोड़ते नहीं हैं।
गरीबी के कारण बच्चों को पढ़ा नहीं पाते घरवाले
परिजनों ने कहा कि वे सभी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं पर जंगल में विद्यालय नहीं होने के कारण पढ़ा नहीं पाते हैं। गरीबी के कारण भी रोटी की चिंता के बीच पढ़ाई का सपना कहीं खो जाता है।
पुलिस ने माना: बच्चों को हथियार दे रहे नक्सली
एएसपी (अभियान) राजेश कुमार सिंह ने भी माना कि नक्सली गरीबी का फायदा उठाकर बच्चों को हथियार थमा देते हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अब नक्सली समाप्त होने के कगार पर है। औरंगाबाद और गया जिलों की सीमा पर स्थित जंगल में करीब 40 से 50 नक्सली ही बचे हैं। उनकी गिरफ्तारी को लेकर रणनीति बनाई गई है। पुलिस लगातार सर्च ऑपरेशन अभियान चला रही है।
मुठभेड़ में मारे गए कम उम्र के दो नक्सली
गुरुवार को सीअसापीएफ से मुठभेड़ में मारे गए तीन नक्सलियों में से दो पूरे परिपक्व भी नहीं हुए थे। उनमें शामिल गया जिले के लुटुआ थाना के सोनदाहा गांव निवासी राजू उर्फ शिवसंत उर्फ बेला सिंह भोक्ता की उम्र महज 19 वर्ष थी। मारा गया दूसरा नक्सली गया जिले के लुटुआ थाना के ही नागोबार गांव का निवासी निरंजन उर्फ गोलू भोक्ता 22 वर्ष का था। इन दोनों नक्सलियों के उम्र कम होने के कारण पुलिस की चिंता बढ़ गई है। दोनों के शव लेने देव थाना पहुंचे परिजनों ने तो उनकी उम्र और कम बतायी।
बच्चों को प्रलोभन दे फंसा लेते नक्सली कमांडर
राजू के पिता बलिंद्र सिंह भोक्ता एवं गोलू के पिता नरेश भुइयां ने नम आंखों से कहा कि गांव की तरफ नक्सली आते थे तो बच्चे उनके पास चले जाते थे। आदत लगी और वे नक्सली बन गए। परिजनों ने नक्सली कमांडरों के बारे में कुछ बोलने से परहेज किया। केवल इतना कहा कि गरीबी इस तरह है कि बिना मजदूरी के घर का चूल्हा नहीं जलता है। जिस दिन मजदूरी नहीं मिलती है उस दिन भोजन की चिंता सताने लगती है। नक्सली कमांडर बच्चों को संगठन में शामिल करने के लिए कई प्रलोभन देते हैं। गरीबी के मारे बच्चे प्रलोभन में आकर जब एक बार हथियार पकड़ लेते हैं तो फिर छोड़ते नहीं हैं।
गरीबी के कारण बच्चों को पढ़ा नहीं पाते घरवाले
परिजनों ने कहा कि वे सभी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं पर जंगल में विद्यालय नहीं होने के कारण पढ़ा नहीं पाते हैं। गरीबी के कारण भी रोटी की चिंता के बीच पढ़ाई का सपना कहीं खो जाता है।
पुलिस ने माना: बच्चों को हथियार दे रहे नक्सली
एएसपी (अभियान) राजेश कुमार सिंह ने भी माना कि नक्सली गरीबी का फायदा उठाकर बच्चों को हथियार थमा देते हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अब नक्सली समाप्त होने के कगार पर है। औरंगाबाद और गया जिलों की सीमा पर स्थित जंगल में करीब 40 से 50 नक्सली ही बचे हैं। उनकी गिरफ्तारी को लेकर रणनीति बनाई गई है। पुलिस लगातार सर्च ऑपरेशन अभियान चला रही है।
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