लहठी दे रही महिलाओं के जज्बे का संदेश
संजय कुमार, गया अपने हुनर को कमाई का जरिया बनाकर खुद और परिवार को बेहतर जिंदगी की राह पर ले आने वा
संजय कुमार, गया
अपने हुनर को कमाई का जरिया बनाकर खुद और परिवार को बेहतर जिंदगी की राह पर ले आने वालीं शहर के इकबालनगर मोहल्ले की महिलाएं एक मिसाल बन गई हैं। आज की तारीख में उनकी लहठी न सिर्फ बिहार, बल्कि दूसरे राज्यों में भी दुल्हनों के हाथों में सज रही।
ये बता रहीं कि जज्बे से सामाजिक-आर्थिक परिवेश को कैसे बदला जा सकता है। पांच साल पहले और उनकी आज की जिंदगी में बड़ा बदलाव आ गया है। यहां करीब एक हजार परिवार लहठी उद्योग से जुड़ गया है। पहले मजदूरी कर किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाने वाले परिवार को महिलाओं ने एक नई राह पर ला दिया, जहां अब तालीम की भी बात होती है। ये हर दिन करीब दस से 12 बंडल लहठी बना लेती हैं। इस उद्योग से जुड़ीं महिलाएं आसमिन खातून, नसीम आरा, रफत खातून, सहीना खातून, इशरत जहां, शहनाज खातून आदि ने बताया कि पहले वे अगरबत्ती बनाती थीं। लेकिन उसमें मेहनत के बाद भी काफी कम पैसा मिल पाता था। लहठी के व्यवसाय में अच्छी आय हो जाती है। इसलिए इसका प्रशिक्षण लेकर काम करना शुरू कर दिया। रेशमा खातून बताती हैं कि उनके हाथों की बनी लहठी दूसरे राज्यों में पसंद की जा रही है। इसलिए इसका निर्यात भी हो रहा है। अब उनकी इतनी कमाई हो जा रही कि बच्चों को पढ़ा भी रहे।
इससे हर दिन छह सौ रुपये तक की न्यूनतम आय हो जाती है। महिलाओं द्वारा निर्मित लहठी की खरीदारी ठेकेदार द्वारा की जाती है। अगर वे स्वयं बाजार में बिक्री करें तो और अधिक पैसे मिल सकते हैं।
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विभिन्न जगहों से आती है सामग्री
लहठी के लिए सामग्री विभिन्न जगहों से मंगाई जाती है। लाह, नग, तार, धातु की चूड़ी आदि जयपुर और कोलकाता से मंगाई जाती है। शहर में भी कई दुकानें हैं, जहां ये सामग्रियां मिल जाती हैं।
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कहां-कहां जाती है लहठी
महिलाओं द्वारा बनाई गई लहठी पटना, मुजफ्फरपुर, मोतीहारी, धनबाद के अलावा उत्तरप्रदेश और ओडिशा आदि में भेजी जाती है। वहां गया की लहठी की अच्छी मांग है।