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बिहार चुनाव : वारिसलीगंज में पलायन व जाति से पार पाना मुश्किल

वारिसलीगंज के चुनावी समर में वैसे तो सीधे-सीधे कास्ट फैक्टर को अहमियत दी जा रही है पर इसके साथ ही एक मुद्दा पलायन का भी है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 26 Sep 2015 12:50 PM (IST)Updated: Sat, 26 Sep 2015 01:03 PM (IST)
बिहार चुनाव : वारिसलीगंज में पलायन व जाति से पार पाना मुश्किल

वारिसलीगंज [भुवनेश्वर वात्स्यायन]। वारिसलीगंज के चुनावी समर में वैसे तो सीधे-सीधे कास्ट फैक्टर को अहमियत दी जा रही है पर इसके साथ ही एक मुद्दा पलायन का भी है। एक जमाने में वारिसलीगंज में चीनी मिल हुआ करती थी।

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साठ के दशक तक वारिसलीगंज स्थित मोहिनी शुगर मिल्स की बिहार की बड़ी चीनी मिलों के रूप में गिनती होती थी। राज्य सरकार ने इसका अधिग्रहण कर लिया। इसके बाद घाटा दिखाकर सरकार ने इस चीनी मिल को बंद कर दिया। उस वक्त इस चीनी मिल में 1200 लोग काम करते थे।

पूरे इलाके के लोगों के लिए यह बड़े रोजगार के केंद्र के रूप में था। आज इस चीनी मिल की देखभाल के लिए छह लोग हैं। अगर इस चीनी मिल के स्क्रैप को भी बेच दें तो एक अैाद्योगिक इकाई खड़ी हो जाएगी। जमीन सो, अलग। लोगों का कहना है कि पिछले चुनाव में नीतीश कुमार ने वादा किया था कि चीनी मिल चालू कराएंगे पर कुछ नहीं हुआ। कोई इस चीनी मिल के लिए आया नहीं। रोजगार का मसला फिर से इस चुनाव में उठ खड़ा हुआ है।

एक सड़क कंपनी इन दिनों इलाके में एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। वहां कुछ लोग काम कर रहे हैं। इसके अलावा रोजगार का कोई और बड़ा साधन नहीं है। लोगों से जब वोट की बात की तो उनका कहना है कि समीकरण तो अपनी जगह पर वोटर तो जा रहा है हरियाणा, उत्तराखंड अैार दिल्ली। अभी से एडवांस ले लिया है। चुनाव के पहले निकल जाएगा ईंट पारने।

रोजगार के लिए पलायन

इस चुनाव में समीकरणों के साथ इस मुद्दे पर भी खूब बातें होती हैं। लोगों ने गन्ने की खेती तक बंद कर दी। कास्ट फैक्टर खूब है इस बार के चुनाव में। अब तक निर्दलीय और लोजपा की टिकट पर चुनाव जीत चुकीं पूर्व विधायक अरुणा देवी इस बार भाजपा की टिकट पर चुनाव मैदान में हैं।

उनके सामने जदयू के प्रदीप महतो हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने अरुणा देवी को 5500 मतों से हराया था। भूमिहार बहुल इस विधानसभा क्षेत्र में 3.23 लाख वोटर हैं, दूसरे नंबर पर यादव अैार तीसरे पर कुर्मी। इसके बाद अन्य पिछड़ी जातियों व मुस्लिम वोटरों का नंबर है।

वर्तमान विधायक प्रदीप महतो के समर्थकों का दावा यादव व कुर्मी वोटरों के साथ-साथ मुस्लिम वोटरों के समर्थन का है। वहीं एक कोण कुर्मी जाति के एक जिलापरिषद सदस्य का है जो कल तक प्रदीप महतो के साथ थे पर आजकल उनसे अलग हैं। उक्त जिला परिषद सदस्य को कुछ अन्य जाति के लोगों ने अपने समर्थन से समर में उतार दिया है। वह पप्पू यादव की पार्टी से मैदान में है।

वहीं अरुणा देवी के समर्थकों का कहना है कि कास्ट लाइन अैार पार्टी लाइन पर भूमिहार जाति के वोटर उनके साथ हैं। वोटों का डिवीजन नहीं है उनके खेमे में। पूरा खेल पिछड़ी जातियों के बोनस वोट पर है। इस समीकरण के साथ है वारिसलीगंज की चुनावी चर्चा।

गुस्से भी मुखर हैं इलाके में

मसलन, पकरीबरांवां को क्यों बना दिया गया पुलिस अनुमंडल, वारिसलीगंज को होना चाहिए था। मालीचक के ङ्क्षपटू ने कहा कि चुनाव आया है तो बिजली का पोल लगा है। पोल लग गया है पर तार कहां है भाई। एक जमाने में यहां से पूर्व मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण ङ्क्षसह के पुत्र सुराज बाबू (बंदी शंकर ङ्क्षसह) और रामाश्रय प्रसाद सिंह भी चुनाव जीत चुके हैं। बात उन दिनों भी कास्ट फैक्टर पर होती थी पर आज यह नये संदर्भ में है यहां।


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