Move to Jagran APP

लाकडाउन में तिब्बती बौद्ध भिक्षुणी आवारा कुत्तों के लिए रोज बनातीं 18 किलो आटा की रोटी, मदद की अपील

लाकडाउन में तिब्बती बौद्ध भिक्षुणी ज्ञानगन नामो प्रतिदिन आवारा कुत्तों के लिए 18 किलोग्राम आटे की रोटी तैयार करती हैं। पांच लीटर दूध के साथ उन्‍हें खिलाती हैं। वे यह काम निजी पैसे से कर रही है। अब पैसा खत्म हो रहा है। मदद नहीं मिलने से चिंतित हैं।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Sun, 18 Jul 2021 07:46 AM (IST)Updated: Sun, 18 Jul 2021 10:55 AM (IST)
लाकडाउन में तिब्बती बौद्ध भिक्षुणी आवारा कुत्तों के लिए रोज बनातीं 18 किलो आटा की रोटी, मदद की अपील
बौद्ध भिक्षुणी ज्ञानगन अवारा कुत्‍तों को भोजन कराती हुईं। जागरण फोटो।

बोधगया, जागरण संवाददाता। कोरोना संक्रमण को लेकर घोषित लाकडाउन से हर कोई प्रभावित हुआ है। मनुष्य के लिए तो कई संस्था आगे आए और प्रतिदिन सूखा राशन से लेकर तैयार भोजन का पैकेट तक वितरण किया। लेकिन, सड़क पर घूमने वाले कुत्तों के बारे में किसी ने पहल नहीं की। वे लाकडाउन में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। होटल व रेस्टोरेंट बंद होने से उनके समक्ष भूख मिटाने का कोई जरिया नहीं रहा। लेकिन, बोधगया में उनके लिए एक तिब्बती बौद्ध भिक्षुणी ने पहल की और प्रतिदिन अपनी क्षमता के अनुसार कुत्तों को खाना उपलब्ध करा रही हैं।

loksabha election banner

18 किलो आटा का तैयार करती हैं रोटी

तिब्बती बौद्ध भिक्षुणी ज्ञानगन नामो प्रतिदिन आवारा कुत्तों के लिए 18 किलोग्राम आटे की रोटी तैयार करती हैं। उसे टुकड़ा कर तीन झोले में भरकर एक रिक्शा से निकलती हैं। वो कहती है कि अल सुबह उठ कर रोटी बनाकर झोले में रखकर निकल जाती है। कुत्तों को खाना परोसने के लिए एक दर्जन स्टील का कटोरा खरीदी है। जिसमे दूध के साथ मसलकर कुतों को परोसती है। प्रतिदिन पांच लीटर दूध खरीदती है। कुत्तों को खिलाने के सिलसिला महाबोधि मंदिर के पूर्वी हिस्से से शुरू करती है, उसके बाद पूरा बोधगया शहर घूमकर कुत्तों को खाना खिलाती है। वो कहती है कि यह काम पिछले साल के लाकडाउन के समय से निजी पैसे से कर रही है। अब पैसा खत्म हो रहा है। किसी से मदद नही मिल रहा। ऐसे में लगता कि अब इन आवारा कुत्तों का क्या होगा।

दो कुत्ते का किया अंतिम संस्कार

लाकडाउन के दौरान किसी बीमारी से दो कुत्ते की मौत हो गई। जिसे ये खाना खिलाती थी। उसका अंतिम संस्कार भी की है। कहती है बौद्ध धर्म में सेवा  और दान महत्वपूर्ण माना गया है। हम ऐसे जीव की सेवा कर रहे हैं जो कुछ बोल नही सकता। इसमें हमें महाबोधि मंदिर के पास के एक होटल संचालक का परोक्ष रूप से सहयोग मिल रहा है। पिछले दो साल से हम होटल का किराया नही दिए हैं। होटल में बीमार कुत्तों को लेकर जाने पर भी हमें रोका नही जाता है।

आवाज देने पर दौड़ पड़ते हैं कुत्ते

69 वर्षीय ज्ञानगन नामो जब आवाज देती है तो उसके रिक्शा के पीछे कुत्ते दौड़ पड़ते हैं। वो कहती है कि प्रतिदिन 60 से 70 कुत्तों को खाना खिलाती हैं। इस कार्य में रिक्शा चालक भी उनका सहयोग करता है। सबसे बड़ी बात की जब वो कुत्तों को खाना देती है तो कोई आपस में झगड़ा नही करता है बल्कि अपनी बारी का इंतजार करता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.