हास्य-व्यंग्य और दर्दभरी कविता-गजल से सजी शाम
जागरण संवाददाता, गया : जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में काव्य संध्या-234 का आयोजन सभापति सुरेन्द्र
जागरण संवाददाता, गया : जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में काव्य संध्या-234 का आयोजन सभापति सुरेन्द्र सिंह सुरेन्द्र की अध्यक्षता में किया गया।
सबसे पहले अमृतसर रेल दुर्घटना में मौत का शिकार हुए लोगों को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धाजलि दी गई। कई कवियों ने रावण दहन पर अपनी कविता पढ़ी। विजय कुमार सिन्हा ने व्यंग्य किया-सभ्य कहे जाने वाले इंसान/तुम सभी मेरे ही वंशज लगते हो/भ्रष्ट, कपटी, हत्यारे व दुराचारी/मुझसे सौ गुणे हो अत्याचारी..। डॉ. निरंजन श्रीवास्तव ने अपनी कविता अभी भी रावण जिंदा है का पाठ किया। मुद्रिंका सिंह ने कहा, घर-घर से रावण को भगाने दुर्गा-लक्ष्मी आई है। सुमन्त की कविता थी-देश में सैकड़ों नहीं, हजारों रावण के पुतले जले/क्या रावण मरा..। विजय कुमार शर्मा ने गीत में गाया-गदा घुमैल, तीर चलैल, बंदरा के तू मुंह बनैल। नकल करके अकल गमौल, तइयो रावण के न भगौल। अजीत कुमार ने नेताओं पर तीखा व्यंग्य किया-वे अपनी खुशी में चमन बेचते हैं, पूरे वतन का अमन बेचते हैं..। डॉ.सुलतान अहमद की गजल थी-करो मेहरबानी तू मुफ लिस पे अहमद, गरीबों के दिल को दुखाना नहीं है। संजय कुमार समदर्शी ने आज की व्यवस्था पर चोट किया-नदी, नहर और आहर प्यासा नेता हर पल देता झांसा। चंद्रदेव प्रसाद केशरी ने गीत गाया-ओ राही तू चलता चल हर पल। शिवेंद्र प्रताप सिन्हा ने हमर अइसन बिहार कविता का पाठ किया। कपिलदेव तिवारी ने सूखे की मार को कविता में उकेरा-किअरिया देख रोवऽ हई हो किसनवा। डॉ. रामपरिखा सिंह ने देवी-दुर्गा की वंदना की। शिववचन सिंह की कविता थी-लाख कोई छिपाने की कोशिश करे, उनके भावों से मन का पता चल गया। अरूण हरलीवाल ने अपनी कविता मेरे हलधर साथी के माध्यम से श्रमिकों के प्रति सम्मान व्यक्त किया। इस अवसर पर बिंदू सिंह, शिवप्रसाद सिंह मुखिया सहित कई प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित रहे।