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सनातन जीवन का परिचय करा रहे गया के बच्चे, माता-पिता का पैर छूकर आते हैं विद्यालय; बोलते हैं श्लोक

वात्सली निर्भया शक्ति द्वारा संचालित विद्यालय में यदा यदा हि धर्मस्य...विद्यालय में श्लोक गूंज रहे हैं। यहां की शिक्षा में समाहित वह भारतीय सनातन संस्कार जिसमें जीवन का दर्शन है। ये बच्चे भारत के सनातन धर्म की पहचान करा रहे हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 11:15 AM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 11:15 AM (IST)
सनातन जीवन का परिचय करा रहे गया के बच्चे, माता-पिता का पैर छूकर आते हैं विद्यालय; बोलते हैं श्लोक
गया में वात्सली निर्भया शक्ति द्वारा संचालित विद्यालय में गीता का श्लोक पढ़ती बच्ची।

संजय कुमार, गया। यदा यदा हि धर्मस्य...विद्यालय में श्लोक गूंज रहे हैं। यहां की शिक्षा में समाहित वह भारतीय सनातन संस्कार जिसमें जीवन का दर्शन है। बच्चों को गीता के श्लोक कंठस्थ हैं। शहर के वार्ड 41 के समीर तक्या में बच्चे पूरी तन्मयता से इसका पाठ करते हैं। अनुसूचित जाति के इन बच्चों को गीता का ज्ञान वात्सली निर्भया शक्ति द्वारा संचालित विद्यालय में दिया जा रहा है। यह संगठन नारी सशक्तीकरण, जल और पर्यावरण संरक्षण के लिए भी कार्य करता है। 

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बच्चों को मनोज कुमार मिश्रा गीता का पाठ पढ़ाते हैं। वे सप्ताह में तीन दिन विद्यालय आकर उन्हें गीता का मर्म बताते हैं। विद्यालय की संचालिका सत्यावती कुमारी गुप्ता ने बताया कि यहां एक साल से बच्चों को गीता का पाठ पढ़ाया जा रहा है। कोरोना काल में जब पूरी दुनिया में सन्नाटा पसरा था, उस समय इसे और बल मिला। बच्चों को धैर्य और संयम की शिक्षा मिली। इस समय यहां 35 बच्चे पढ़ रहे हैं। पूरी शिक्षा निशुल्क है। गीता पढ़ाने वाले मनोज शाक्य मुनि कॉलेज, बोधगया में प्राध्यापक हैं। उनका मानना है कि भारतीय जीवन दर्शन से परिचय कराने के लिए नई पीढ़ी को गीता का ज्ञान जरूरी है। यहां पढ़ रहे बच्चों में इशांत, आरती कुमारी, साक्षी, धवल आदि छह वर्ष के हैं। उन्हें गीता के कई श्लोक कंठस्थ हैं। एक बच्चा पढ़ता है, बाकी पीछे-पीछे दोहराते हैं। सत्यावती कहती हैं कि अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व तभी होगा, जब हम उसके बारे में जानेंगे। गीता पाठ करने के बाद बच्चों में परिवर्तन भी देखा जा रहा है। उनमें भारतीय संस्कार भरने की कोशिश की जा रही है। वे विद्यालय आने से पहले माता-पिता के पैर छूते हैं। विद्यालय में भी गुरुओं का इसी प्रकार सम्मान करते हैं और शिक्षक को हरि ओम कह कर संबोधित करते हैं। ऐसा भी नहीं है कि ये बच्चे आज की दुनिया से अलग हैं। तकनीक हो या बदल रही दुनिया, इससे भी वाकिफ हैं, पर साथ-साथ अपनी मिट्टी का संस्कार भी है। कोशिश यही है कि इसे ज्यादा से ज्यादा प्रचारित-प्रसारित किया जाए, ताकि नई पीढ़ी अपनी संस्कृति की जड़ों से जुड़ी रहे और इसे आगे बढ़ाती रहे। 


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