Move to Jagran APP

औरंगाबाद के इस गांव से खाट पर लादकर बीमार को ले जाते हैं तीमारदार, बरसात में बन जाता है टापू

औरंगाबाद जिले के नवीनगर प्रखंड में सिंहपुर गांव को विकास का इंतजार है। हद तो यह कि अधिकारियों की लापरवाही से जनगणना में भी इस गांव का नाम नहीं आ सका। यहां के लोग बुनियादी सुविधाओं को भी तरस रहे हैं।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Fri, 08 Jan 2021 12:13 PM (IST)Updated: Sat, 09 Jan 2021 10:39 AM (IST)
औरंगाबाद के इस गांव से खाट पर लादकर बीमार को ले जाते हैं तीमारदार, बरसात में बन जाता है टापू
बुनियादी सुविधाएं भी मयस्‍सर नहीं हैं इस गांव में। जागरण

मुकेश कुमार, औरंगाबाद । गांव की तस्वीर को बदलने और ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएं देने के लिए सरकार ने सैकड़ों योजनाएं संचालित कर रखी है। सरकार हर गांव को शहरीकरण का रूप दे रही है परंतु योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल रहृा है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण सरकार की योजनाएं धरातल पर नहीं उतर रहीं। नवीनगर प्रखंड की पिपरा पंचायत के पिपरा टोले सिंहपुर गांव का ही उदाहरण लें। यह आज भी विकास से कोसों दूर हैं। आजादी के इतने वर्षों बाद भी इस गांव में विकास की किरण नहीं पहुंच सकी है।

loksabha election banner

आर्थिक जनगणना में नहीं जुड़ा गांव का नाम

यह गांव आर्थिक जनगणना में नहीं जुड़ पाया। इस गांव में जाने के लिए सड़क तक नहीं है। बारिश होने के कारण यह गांव टापू बन जाता है। अगर किसी की तबियत खराब होती है कि उसे खाट के सहारे के इलाज के लिए अस्पताल ले जाना पड़ता है। जागरण की टीम जब गांव पहुंची तो ग्रामीण काफी मायूस दिखे। विकास पाल, रामावधार पाल, चंद्रदेव राम ने बताया कि इस गांव की ओर न तो अधिकारियों का ध्यान है और न ही जनप्रतिनिधियों का। हम कैसे जीवन यापन कर रहे हैं इसके बारे में किसी को चिंता नहीं है। कहा कि भैया हो ! बिना आंदोलन के कुछ न होवे जाइत हव...। अब हमनी आंदोलन करबइ तब सरकार हमनी ला कुछ करतइ।

विकास को तरस रहे गांव के लोग

नवीनगर प्रखंड के पिपरा पंचायत के पिररा टोले सिंहपुर गांव के ग्रामीण एक अदद विकास को लेकर तरस रहे हैं। बता दें कि यह गांव महादलित एवं अतिपिछड़ा का है। इस गांव के ग्रामीणों को सरकार द्वारा संचालित किसी भी योजना का लाभ नहीं मिलता है। गांव में पक्की नाली-गली नहीं है। बारिश होने पर ग्रामीण गली में ठेहुनाभर पानी में आवागमन करते हैं। यूं माने की ग्रामीणों की जिंदगी नरक से भी बदतर है। इस गांव में बरसात के दिन में न तो अधिकारी आते हैं और न ही जनप्रतिनिधि। अगर एक बार अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि इस गांव की दुर्दशा को देख लेंगे तो विकास का ख्याल आ जाएगा।

न सड़क है और न शुद्ध पानी मिल रहा

बता दें कि सरकार द्वारा हर घर नल योजना से सभी घरों में शुद्ध पेयजल पहुंचा रही है परंतु इस गांव के ग्रामीणों को नसीब नहीं है। हर गली नाली पक्कीकरण का लाभ नहीं मिल रहा है। अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि आर्थिक जनगणना का रोना रो रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया हमलोगों का वोटर लिस्ट में नाम है परंतु कोई लाभ नहीं मिलता है। नेताजी आते हैं वोट मांगकर चले जाते हैं। आर्थिक जनगणना के बाद लोकसभा एवं विधानसभा का चुनाव हुआ। जनप्रतिनिधि एवं अधिकार आएं और जांच कर उचित कार्रवाई करने की बात कहीं परंतु कुछ नहीं हुआ।

आवास व उज्ज्‍वला योजना का नहीं मिला लाभ

आर्थिक जनगणना में गांव का नाम नहीं जुटने के कारण ग्रामीणों को आवास योजना, उज्जवला योजना, राशन का लाभ नहीं मिल पाया है। आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाने के कारण ग्रामीण आसमान निहार रहे हैं। फुस एवं खपड़ा की झोपड़ी बना अपनी जीवन व्यतित करने को मजबूर हैं। फूला देवी, शांति देवी, राधिका देवी, कमला देवी, मानमती देवी ने बताया कि बरसात के दिन में फूस की झोपड़ी से पानी टपकने के कारण दिन तो कट जाता है परंतु रात बिताना मुश्किल हो जाता है। सरकार आवास योजना पर करोड़ों खर्च कर रही है परंतु ये गरीब आवास के लिए भटक रहे हैं। गांव के ग्रामीण उज्जवला योजना से वंचित हैं। स्थिति यह है कि आज भी गैस पर भोजन पकाने की वजाए चूल्हा फूंकने को मजबूर हैं। जंगल से लकड़ी लाकर दो वक्त की भोजन बनाते हैं। इस गांव के बच्चों के अंदर मायुषी देखने को मिलती है। बीपीएल में नाम नहीं जुड़ने के कारण राशन का लाभ नहीं मिल पाता है। 

चंदा के पैसा से गांव में लाया रोशनी

पिपरा टोले सिंहपुर गांव के ग्रामीण काफी गरीब हैं। नक्सल इलाका का यह गांव काफी पिछड़ा है परंतु आयाम नए गढ़ दिए हैं। आजादी के करीब 60 वर्ष तक इस गांव में बिजली नहीं पहुंचा था। करीब दो वर्ष पहले ग्रामीणों ने चंदा कर गांव से करीब चार किलोमीटर दूर कोइरी बिगहा से बिजली लाया है। ग्रामीणों ने बताया कि बच्चों को पढ़ाई में बिजली के बिना काफी परेशानी होती थी। चंदा के पैसा से बिजली लाकर रोशनी लाया। सरकार द्वारा किसी प्रकार की मदद नहीं की जा रही है। जब अधिकारी के पास किसी कार्य के लिए जाते हैं तो आर्थिक जनगणना का मापदंड बताने लगते हैं। कहते हैं कि जब तक यह गांव आर्थिक जनगणना में नहीं जुटेगा कोई भी कार्य नहीं हो सकता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.