बुझ गया शिवव्रत के घर का चिराग, टूट गए पिता अनिल के सपने
संवाद सूत्र, डोभी : पिता के कंधे पर बेटे का जनाजा निकले। ऐसा किसी पिता ने स्वप्न में भी नही
संवाद सूत्र, डोभी : पिता के कंधे पर बेटे का जनाजा निकले। ऐसा किसी पिता ने स्वप्न में भी नहीं देखा होगा। जिस दिन शिवव्रत के घर अरविंद का जन्म हुआ था तो घर और आसपास के लोगों ने यही कहा था कि अरविंद इस कुल का दीपक है। जो अपने माता पिता का नाम रोशन करेगा। काल का पहिया कुछ ऐसा घूमा कि आज शिवव्रत के कुल का दीपक बुझ गया। इकलौता पुत्र अरविंद की मौत रविवार को द्वारपाल तालाब में डूबने से हो गई। दस साल पहले शिवव्रत की पत्नी का निधन हो चुका है। तब से शिवव्रत अपने इकलौते पुत्र अरविंद को पाला। अरविंद को पढ़ाया लिखाया। इसी साल मैट्रिक की परीक्षा पास की थी, जिससे पिता शिवव्रत को काफी उम्मीद थी। यह सहारा भी अब नहीं रहा। पिता को क्या पता था जिस तालाब के पास अरविंद पिकनिक मनाने अपने कुछ दोस्तों के साथ गया था, वहां से उसका शव लेकर आना पड़ेगा।
अरविंद के असामयिक निधन के बाद से पिता शिवव्रत का रो रोकर हाल बुरा है। कभी बेटे के शव को देख तो कभी अपने दुर्भाग्य पर रोए जा रहा था। लोग भी शिवव्रत के दुर्भाग्य पर आंसू बहा रहे थे। बेटे का शव कंधे पर रखने की बारी जब आई तो शिवव्रत और टूट चुका था। गांव के लोग भी मर्माहत।
इधर, अनिल सिंह के घर में बेटे आशीष को हमेशा के लिए खोने का गम था। सबकी निगाहें आशीष के स्थूल शरीर पर थी। अनिल सिंह के मजबूत कंधे पर बैठकर खेलने वाला आशीष का शव था। इस बोझ को सहन करने की क्षमता अनिल सिंह को नहीं रह गई थी। घर, आंगन व गांव में मातम था। आशीष इसी वर्ष अमारूत हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा में सफलता पाई थी। उसकी उच्च शिक्षा को लेकर पिता अनिल सिंह कई सपने संजोए थे। उनके सारे सपने टूट गए थे।