गया में जान जोखिम में डालकर पेट की आग बुझाने के लिए जीटी रोड पर भीख मांग रहे है बच्चे
नाम- आरती और गुंजन। उम्र लगभग 7-8 साल। काम- भीख मांगना और अपना परिवार का पेट पालना। स्थान- जी टी रोड डोभी ओवर ब्रिज। दोनो अंधे है परन्तु गाड़ी का खौफ नही है। दुर्घटना का डर पेट के आग के सामने समाप्त हो चुका है।
संवाद सूत्र, डोभी (गया)। नाम- आरती और गुंजन। उम्र लगभग 7-8 साल। काम- भीख मांगना और अपना परिवार का पेट पालना। स्थान- जी टी रोड डोभी ओवर ब्रिज। जी हां, सुबह से लेकर शाम तक ये दोनों विकलांग भाई-बहन जी टी रोड पर अपना हांथ फैलाये बैठा रहता है। दोनो अंधे है परन्तु गाड़ी का खौफ नही है। दुर्घटना का डर पेट के आग के सामने समाप्त हो चुका है।
परिवार के अन्य सदस्य भी अंधे है। जिससे परिवार के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या हमेशा बना हुआ है। पूर्व में इसके परिवार के सदस्य कबाड़ी खरीदने का कार्य करता था जिससे परिवार का भरण पोषण होता था। परिवार की संख्या बढ़ते गयी। जिससे धंधे का पूंजी भी समाप्त हो गया। इस परिवार को दो-तीन सामाजिक संगठन ने मदद पहुंचाया परंतु आंशिक होने के कारण जल्द ही समाप्त हो गया और पूरा परिवार फिर से भीख मांगने पर उतर गया।
क्या कहते है बच्चे
बच्चे से पूछे जाने पर बताया कि जान बूझकर जान को जोखिम में डालकर कार्य करते है। जिंदगी जीने की तमन्ना किसको नही होती है परन्तु भगवान ने परिवार के सदस्यों को ऐसा ही बना दिया कि पेट की आग बुझाने के लिए जिंदगी को रोड पर लाकर खड़ा कर दिया। जी टी रोड पर सर्वाधिक वाहन चलने की बात कहने पर कहा कि जिल्लत की जिंदगी जी रहे है।
क्या करें, यह नही करेंगे तो मदद कौन करेगा। एक दिन की ब्यवस्था कोई कर देगा, रोज-रोज की ब्यवस्था कौन देता है। सरकारी योजनाओं का लाभ भी नही दिया जा रहा है। जिसके सहारे जीवन मे कोई नयापन आ सके। जिंदगी में भगवान ने पहले ही पूरे परिवार को अंधेरे में धकेल दिया है अब और क्या बचा है।