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'देहरी के पार स्त्री-आवाज' पर केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के छात्रों ने प्रोफेसरों के साथ की चर्चा, जानें क्‍या कहा...

देहरी के पार स्त्री-आवाज विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसे संबोधित करते हुए भाषा केंद्र एवं साहित्य पीठ के अधिष्ठाता एवं हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सुरेश चन्द्र ने महिलाओं के संवैधानिक अधिकार के बारे चर्चा और महिलाओं के विकास की बात की।

By Prashant KumarEdited By: Published: Thu, 11 Mar 2021 04:06 PM (IST)Updated: Thu, 11 Mar 2021 04:06 PM (IST)
परिचर्चा में वक्‍ताओं को सुनते छात्र छात्राएं। जागरण।

संवाद सूत्र, टिकारी (गया)। सीयूएसबी में चल रहे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सप्ताह के अंतर्गत गुरुवार को विवि के हिंदी विभाग द्वारा 'देहरी के पार स्त्री-आवाज' विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसे संबोधित करते हुए भाषा केंद्र एवं साहित्य पीठ के अधिष्ठाता एवं हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सुरेश चन्द्र ने महिलाओं के  संवैधानिक अधिकार के बारे चर्चा और महिलाओं के विकास की बात की। सिंधु घाटी की सभ्यता में मातृदेवी की बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में महिलाओं का प्रमुख स्थान रहा है और वे समाज की महत्त्वपूर्ण घटक हैं। उन्होंने वंचित महिलाओं के लिए विधिक सहायता पर जोर दिया।

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 उन्होंने कहा कि यहां सामूहिक अपमान की परम्परा चल रही है। ‘‘चोरी-चमारी’’ शब्द युग्म के प्रयोग में सन्निहित जाति विशेष की स्त्रियों के अपमान की परंपरा समाप्त होनी चाहिए । इसकी समाप्ति के लिए दंड विधान की आवश्यकता की बात कही। इज्जत का सवाल स्त्रियों से नहीं पुरुषों से पूछना चाहिए। मैत्रेयी पुष्पा की किताब 'फाइटर की डायरी' के माध्यम से संघर्षशील महिलाओं को याद किया। उन्होंने कहा भाषणों से नहीं स्त्रियों के पक्ष में सकारात्मक एवं मानवीय कार्य करने से महिलाएं सशक्त होंगी। इस अवसर पर प्रोफेसर चन्द्र ने महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले के महिला उत्थान विषयक कार्यों पर भी प्रकाश डाला ।       

वंही प्रमुख वक्ता के रूप में अंग्रेजी विभाग की सह-प्राध्यापिका डॉ॰ अर्चना सिंह ने अपने वक्तव्य में स्त्रियों की उपलब्धियों का संदर्भ लेते हुए बताया कि आज स्त्रियां जमीन से आसमान तक का सफर तय कर रही हैं । विशिष्ट वक्ता के रूप में शिक्षा विभाग की सहायक प्राध्यापिका डॉ॰ कविता सिंह ने ऐतिहासिक प्रक्रियाओं के माध्यम से बताया कि विचारधारा, अनुशासन और दंड विधान के द्वारा स्त्रियों के अधिकार और स्वतंत्रता को सीमित किया जाता है। बाल-विवाह, पर्दा प्रथा आदि पुरुषवादी समाज द्वारा बनाये गए नियम हैं। उन्होंने स्त्रीवादी नजरिये से व्यवस्था में परिवर्तन लाने पर जोर दिया।           

आमंत्रित वक्ताओं में हिन्दी-विभाग की छात्रा मेघा सिन्हा ने कहा कि समाज मे आए-दिन प्रायः स्त्रियों को अमानवीय, अशोभनीय, आचरण व्यवहारों का सामना करना पड़ता है। ऐसी घटनाओं का संज्ञान लेते हुए स्त्री को उचित न्याय मिले, न्याय व्यवस्था में अपेक्षित सुधार पर बल दिया। शोध छात्रा ज्ञानती ने अपनी बात रखते हुए कहा कि स्त्रियों के खिलाफ होने वाली हिंसा का तुरंत प्रतिकार करना चाहिए। इस अवसर पर कार्यक्रम स्थल पर स्त्री जीवन पर केन्द्रित पोस्टर प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया।

कार्यक्रम में विभागीय शिक्षकों में डॉ॰अनुज लुगुन, डॉ॰ शांति भूषण, डॉ॰ रामचंद्र रजक, डॉ॰ कफील अहमद, डॉ॰ योगेश प्रताप शेखर मौजूद रहे। शिक्षा संकाय की सहायक प्राध्यापिका डॉ॰ स्वाति गुप्ता, शोधार्थी सोनाली राजपूत, सत्येंद्र कुमार, रामरतन कुमार, ज्ञानती, सीमा, अम्बालिका जायसवाल, किशोर कुमार, रुद्र चरण माझी, रवीन्द्र  कुमार, चाहत, विनय कुमार यादव, अंजनी कुमार आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम में 'साहित्य एवं कला परिषद' के समन्वयक डॉ कर्मानंद आर्य की सराहनीय भूमिका रही। कार्यक्रम का सफल संचालन सिद्धांत तथा धन्यवाद ज्ञापन रुचि कुमारी ने की।


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