बौद्ध धर्म में नारी को लौकिक व आध्यात्मिक धरातल पर विशेष सम्मान
महिलाओं को अनेक प्रकार से प्रताड़ित व शोषण किए जाने का उल्लेख प्राचीन काल से आधुनिक काल तक मिलता है। लेकिन बौद्ध धर्म में नारी जाति को लौकिक तथा आध्यात्मिक धरातल पर विशेष सम्मान दिया गया। ये बातें बुधवार को महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया शाखा बोधगया में आयोजित दो दिवसीय द्वितीय वैश्विक सम्मेलन में मुख्य वक्ता अमेरिका के बौद्ध भिक्षु बोधि ने कहा।
गया। महिलाओं को अनेक प्रकार से प्रताड़ित व शोषण किए जाने का उल्लेख प्राचीन काल से आधुनिक काल तक मिलता है। लेकिन बौद्ध धर्म में नारी जाति को लौकिक तथा आध्यात्मिक धरातल पर विशेष सम्मान दिया गया। ये बातें बुधवार को महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया शाखा बोधगया में आयोजित दो दिवसीय द्वितीय वैश्विक सम्मेलन में मुख्य वक्ता अमेरिका के बौद्ध भिक्षु बोधि ने कहीं। 'बौद्ध धर्म एवं नारी विमुक्तिकरण' विषय पर आयोजित इस सम्मेलन का उद्घाटन धम्म दीप जला व मंगल सूत्त पाठ से किया गया। इसके बाद स्मारिका का विमोचन अतिथियों ने किया। भिक्षु बोधि ने कहा कि बौद्ध धर्म में भिक्षुणी संघ में अनेक उच्च स्तरीय ज्ञान से संपन्न भिक्षुणियों का उल्लेख बौद्ध ग्रंथों में मिलता है। साथ ही कुछ ग्रंथों में नकारात्मक छवि के भी उदाहरण मिलते हैं। समाज में व्याप्त नारी से संबंधित बुराई जैसे यौन दुराचार, वैश्यावृत्ति आदि के लिए केवल महिलाएं जिम्मेवारी है? इसका स्पष्ट उत्तर नहीं है, क्योंकि इसमें पुरुषों की भागीदारी होती है। उन्होंने कहा कि बौद्ध थेरवाद परंपरा में भिक्षुओं को भिक्षुणियों के प्रति और उदारवादी नीति अपनाने की आवश्यकता है। मेरी दृष्टि में पुरुष और नारी में प्रतिस्पर्धा से संघर्ष की संभावना हो सकती है। प्रतिस्पर्धा के स्थान पर सहयोग की भावना से परस्पर प्रेम, आदर का विकास होगा। महिलाओं की प्रगति हेतु राजकीय प्रयास भी सराहनीय कदम है। इसे और गति दी जानी चाहिए।
सम्मेलन के सम्मानित अतिथि सह प्रमंडलीय आयुक्त टीएन विंदेश्वरी ने नारी की स्थिति को और सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता पर जोर दी। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म में अधिकार-समानता के सिद्धांत को बढ़ावा दिया गया है। महिलाओं के विकास का द्वार न केवल सामाजिक बल्कि धार्मिक क्षेत्र में भी खोला है। भिक्षुणी संघ का कार्य कई देशों में सराहनीय है। सोसाइटी के महासचिव भंते पी सिवली थेरो ने स्वागत भाषण में कहा कि ढ़ाई हजार वर्ष पहले बुद्ध शासन के चार स्तंभ भिक्षु, भिक्षुणी, उपासक और उपसिका थे। जिन्होंने धर्म के मुख्य संदेश शांति, धैर्य, समता, स्वतंत्रता का प्रचार-प्रसार सुदूर क्षेत्रों में किया था। इससे पीड़ित मानवता को मुक्ति का मार्ग मिला था। सम्मेलन में नालंदा महाविहार के कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ, चीन के भिक्षु वूपसम, थाई भिक्षुणी धम्मानंदा, प्रो. विमलेंदु मोहंती, कमांडेंट नरेद्र सिंह, सोसाइटी के उप सभापति हेमेन्दु विकास चौधरी, बीटीएमसी सचिव एन. दोरजे ने विचार व्यक्त किए।