बिहार की एक ऐसी मुखिया जिसे प्रचार की जरूरत नहीं, चुनावी दौर में कर रहीं ऐसा काम कि हो रही वाहवाही
कहा जाता है लोकतंत्र में सबसे कठिन चुनाव पंयायत स्तर पर होता है। क्योंकि क्षेत्रफल कम और विरोधी अपने होते हैं। मुखिया के चुनाव प्रचार में भी लोग लाखों खर्च करते हैं। मगर बिहार की एक ऐसी मुखिया भी है जिसे प्रचार की कोई जरूरत नहीं।
संवाद सहयोगी, नवादा। कहा जाता है, लोकतंत्र में सबसे कठिन चुनाव पंयायत स्तर पर होता है। क्योंकि, क्षेत्रफल कम और विरोधी अपने होते हैं। मुखिया के चुनाव प्रचार में भी लोग लाखों खर्च करते हैं। मगर बिहार की एक ऐसी मुखिया भी है, जिसे प्रचार की कोई जरूरत नहीं। वे अपने काम और सरल स्वभाव के कारण जानी जाती हैं। जीत-हार के द्वंद्व से परे ये महिला मुखिया चुनावी दौर में भी अपने काम में मशगूल हैं।
बात नवादा जिले के रजौली प्रखंड अंतर्गत अमांवा पूर्वी पंचायत की मुखिया रिंगा देवी की हो रही है। एक ओर पंचायत चुनाव का बिगुल फूंके जाने के बाद उम्मीदवार वोट बैंक की राजनीति में जुट गए हैं तो रिंगा देवी अपने खेतों में गेंहू की कटाई करवा रही हैं। ऐसा नहीं है कि वे क्षेत्र की जनता से नहीं मिलतीं, उनकी समस्याओं को नहीं सुनतीं या फिर उसे दूर करने का प्रयास नहीं करतीं, बल्कि इन सारे कामों को करते हुए वे प्रचार-प्रसार से अलग खेती-बारी में समय बिताती हैं।
रिंगा देवी कहती हैं, खेती काे महत्व देना भी जरूरी है, क्योंकि ये भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव है। इससे ही सालभर मेरे परिवार का पेट भरा रहता है। चुनाव एक प्रकिया है। प्रचार-प्रसार में वैसे लोग समय जाया करते हैं, जो पद मिलने के बाद जनता से दूर हो जाते हैं। ऐसे लोगों को चुनाव से डर लगता है। जनता की इच्छा के बगैर चुनाव नहीं जीता जा सकता। मैं अपने प्रचार के लिए नहीं, बल्कि मतदाताओं को उनके मताधिकार का प्रयोग के प्रति जागरूक करने के लिए उनके घर जाऊंगी।
गौरतलब है कि रजौली का अमांव पूर्वी पंचायत नक्सल प्रभावित इलाका है। पंचायत चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए यह सीट आरक्षित है। रिंगा देवी अभी तक मात्र एक टर्म की मुखिया रही हैं। वे अपने व्यवहार और कुशल कार्यशैली के कारण क्षेत्र में लोकप्रिय हैं। उनका मानना है कि कोई कितना भी प्रलोभन दे, जनता अंत में काम करने वाले को ही चुनती है।