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दीपावली व छठ को ले मिट्टी के दीये बनाने में जुटे कुंभकार

बाजार सुधरा लेकिन संतुष्ट नहीं है पेशे से जुड़े लोग

By JagranEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 06:48 PM (IST)Updated: Sat, 31 Oct 2020 08:56 AM (IST)
दीपावली व छठ को ले मिट्टी के दीये बनाने में जुटे  कुंभकार
दीपावली व छठ को ले मिट्टी के दीये बनाने में जुटे कुंभकार

बाजार सुधरा लेकिन संतुष्ट नहीं है पेशे से जुड़े लोग

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चाइनीज लाइटों ने मिट्टी के दिये के कारोबार को किया था प्रभावित गया। दीपावली पर्व जैसे जैसे नजदीक आता जा रहा है कुंभकार मिट्टी के दीये बनाने में जुट गए हैं। जगजीवन नगर,हरदिया कुम्हार टोला, थाना मोड़ आदि स्थानों पर सुबह से लेकर शाम तक मिट्टी के दीये, मां लक्ष्मी की मूर्तियां, मिट्टी के अन्य वर्तन और बच्चों के खिलौने बनाने का काम किया जा रहा है। इस पेशे से जुड़े सुनील पंडित ने बताया कि वह पिछले तीन माह से दीपावली में हर घर रोशन करने के लिए दीये के साथ बच्चों के लिए खिलौने बनाने के लिए पूरे परिवार के साथ काम में लगे हैं। ग्रामीण क्षेत्र के लोग काफी संख्या में दीपक लेने आते हैं। पहले ज्यादा बिकता था तो मुनाफा ज्यादा होती थी। चायनीज लाइटों के कारण बिक्री पर थोड़ा असर हुआ है। हालांकि गत साल कुछ संगठनों द्वारा चाइनीज लाइटों का बहिष्कार का ऐलान का असर हुआ था और दीये की मांग बढ़ी थी। इस वर्ष कुछ अधिक मिट्टी की दीये बिकने के आसार हैं। दीवाली में 100 रुपए प्रति सैकड़ा दीये की कीमत रहेगी। दीपावली आते-आते मांग बढ़ जाती है। जिससे इस पेशे से जुड़े परिवारों को आजीविका के क्षेत्र में फायदा होता है। बबलू पंडित कहते हैं कि लगातार मिट्टी के सामानों की मांग में कमी आने से इस पेशे से जुड़े लोगों की रुचि घटती जा रही थी, लेकिन समय बदल रहा है। लोग फिर से इसे अपनाने लगे हैं। खासकर चाइनीज सामान के बहिष्कार का असर हुआ है। कार्तिक मास प्रारंभ हो रहा है, इस माह में दीपावली व छठ के साथ कार्तिक स्नान के बाद दीये जलाने की परंपरा रही है। दीये के साथ मिट्टी के अन्य प्रकार के वर्तनों की मांग भी ज्यादा होती है। एक समय था, जब कुंभकारों की अपनी एक पहचान थी। दीवाली जैसे त्योहारों में तो इन्हें फुर्सत ही नहीं मिलती थी। दीपावली का त्योहार आने के महीनों पहले से दीपक बनाने में जुट जाते थे। तब जाकर वह हर घर की जरूरत के मुताबिक दीपक तैयार कर पाते थे। मगर समय के साथ दीये की जगह चाइनीज लाइटें ले ली थी। जिससे इस पेशे से जुड़े लोगों का काम-रोजगार घट गया था। रजौली में कभी इस पेशे से जुड़े परिवारों की बस्ती में हमेशा चहल-पहल होती थी। लेकिन आज मिट्टी को तरासने का हुनर रखने वाला यह कुनबा संतुष्ट नहीं है। अब तो मिट्टी भी मोल लेकर सामानों का निर्माण करना पड़ता है। देश के विभिन्न सामाजिक संगठनों तक के स्वदेशी दीये जलाने की अपील पर इनके रोजगार में कितनी बढ़ोत्तरी हुई है, इसपर कृष्णा पंडित कहते हैं कि हमारे लिए कुछ नहीं बदलता। अभी तक कोई बड़ा ऑर्डर नहीं मिला है। रेट भी नहीं बढ़ा है। हां मिट्टी पहले से ज्यादा महंगी जरुर मिल रही है। जिससे हम लोगों को महंगाई की मार झेलनी पड़ रही है। मजबूरी है, अपने परंपरागत कार्य अपनाकर किसी तरह गुजर बसर करने की।


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