पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए लांघ गए 676 सीढि़यां
- फोटो -पितृपक्ष के दूसरे दिन कर्मकांड के लिए प्रेतशिला में पिंडदानियों की उमड़ी भीड़ -पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए लड़खड़ाते कदमों से पार की सीढि़यां -पहाड़ी की तहलटी में स्थित ब्रह्मा कुंड के पवित्र जल से किया तर्पण ------------- जागरण संवाददाता गया
गया । पितरों को मोक्ष की कामना को लेकर पिंडदानी लड़खड़ाते कदमों से 676 सीढि़यां चढ़कर प्रेतशिला पहाड़ी पर चढ़ रहे थे। आस्था के आगे कड़ी धूप की भी परवाह नहीं थी। यही तो भारत की मजबूत सनातन परंपरा का संस्कार है। पितृपक्ष के दूसरे दिन शनिवार को कर्मकांड को लेकर प्रेतशिला में पिंडदानयिों की भीड़ उमड़ी।
सुबह से ही पिंडदानी प्रेतशिला पहुंचने लगे। सूर्य उदय होते ही कर्मकांड की विधि प्रारंभ हो गई। पिंडदानी पहाड़ी की तहलटी में स्थित ब्रह्मा कुंड के पवित्र जल से तर्पण कर कर्मकांड की विधि प्रारंभ किए। कुंड के पास यात्री शेड में बैठे पिंडदानी अपने-अपने पितरों को मोक्ष की कामना कर रहे थे। शेड के अलावा पिंडदानी आसपास पेड़ों की छाये में बैठ पूर्वजों के फोटो आगे में रखकर कर्मकांड कर रहे थे। पिंडदान सत्तू, चावल, तिल, जौ, घी, दूध, फल, सहित अन्य सामग्री से कर रहे थे। कर्मकांड को लेकर पिंडदानी पिंड को लेकर पहाड़ी के चोटी पर स्थित यमराज के मंदिर में अर्पित करते हैं। पिंडदानी लड़खड़ते कदमों से पहाड़ी के चोटी पर स्थित मंदिर में पहुंचे। वहां अकाल मृत्यु को प्राप्त जातक का श्राद्ध एवं पिंडदान का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस पर्वत पर पिंडदान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों तक पिंड सीधे पहुंच जाता है। इससे उन्हें योनियों से मुक्ति मिल जाती है। प्रेतशिला को प्रेत पर्वत, प्रेतकाला एवं प्रेतगिरि भी कहा जाता है। प्रेतशिला पहाड़ी पर सत्तू से पिंडदान करने की पुरानी परंपरा है। यहां पिंडदानी सत्तू के बने पिंड से कर्मकांड करते हैं और फिर पहाड़ी पर सत्तू उड़ाते हैं। मान्यता है कि पहाड़ी पर सत्तू उड़ने से प्रेत आत्मा को मुक्ति मिलती है। कर्मकांड पूरा करने बाद पितरों के लिए तालियां बजाकर उनके मोक्ष की कामना करते हैं।