औरंगाबाद के पातालगंगा के प्रति लोगों की है अपार आस्था, न्यास बोर्ड नहीं करा रहा स्थान का विकास
औरंगाबाद जिले में कई धार्मिक व पर्यटन स्थल हैं। इन्हीं में से एक है देव से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित पातालगंगा। धार्मिक न्यास बोर्ड के अधीन आने वाले इस स्थान का समुचित विकास नहीं हो पाया है।
जागरण संवाददाता, औरंगाबाद। देश के प्रसिद्ध देव सूर्य मंदिर से करीब दो किलोमीटर दूरी पर पतालगंगा मठ है। यह मठ एक सिद्ध तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है। पहले इस मठ की व्यवस्था स्थानीय कमेटी की देखरेख में होती थी। बाद में यह धार्मिक न्यास बोर्ड के अधीन आ गया। एसडीएम कमेटी के अध्यक्ष हैं। लेकिन न्यास बोर्ड के अधीन आने के बावजूद इसका उचित विकास नहीं हो पा रहा है।
महात्मा जी ने जमीन में गाड़ा चिमटा और निकलने लगी जल धारा
बताया जाता है की लगभग 125 वर्ष पूर्व ज्ञानीनंद जी नामक एक महात्मा देव सूर्य मंदिर में दर्शन के लिए आए थे। वे पाताल गंगा के पास बम्हौरी पहाड़ के पास कुटिया बनाकर रहने लगे थे। महात्मा ने अपने भक्तों के लिए पाताल गंगा में शिवमंदिर, राधाक़ष्ण मंदिर तथा हनुमान मंदिर बनवाया। कुछ बुजुर्ग बताते हैं की बाबा एवं उनके शिष्यों की प्रतिदिन गंगा स्नान की इच्छा पर महात्मा ज्ञानीनंद ने कहा की गंगा यहीं आएंगी। ऐसा कहकर पृथ्वी में अपना चिमटा धंसाया। जमीन से गंगा का जल निकलने लगाा। उसी दिन से इस स्थान का नाम पाताल गंगा पड़ गया। उसी स्थान पर महात्मा ने तालाब का निर्माण कराया।
कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के लिए लगती है भीड़
मान्यता है की इस तालाब में स्नान करने से गंगा स्नान का लाभ प्राप्त होता है। हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को यहां विशाल मेला लगता है। स्नान कर श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करते हैं। कहा जाता है कि यहां के तालाब का पानी कभी भी न सूखता है न कम होता है। बाद में महात्मा ने यहां ब्रह्मचारी संस्कृति विद्यालय की स्थापना की। हालांकि अब विद्यालय बंद हो गया है। भवन भी ध्वस्त हो गया है। महात्मा ने यहां बड़ा गोशाला बनाया था। वह भी इतिहास का हिस्सा हो चुका है। कहा जाता है कि महात्मा जी के समय में देश के कई हिस्सों के श्रद्धालु यहां आते थे। मठ के पास आज भी करोड़ों की सैकड़ों बीघा जमीन है। लेकिन मठ का समुचित विकास नहीं हो पा रहा। जीर्ण शीर्ण हो चुके पौराणिक तालाब की मरम्मत तक नहीं कराई जाती है। भगवान के मंदिर की सुध नहीं ली जा रही।