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'गयाजी' में कई भाषाओं में की गई है रामायण की रचना

गया। सनातन धर्म में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस का बड़ा महत्व है जिसमें मर्यादा प

By JagranEdited By: Published: Wed, 05 Aug 2020 08:11 AM (IST)Updated: Wed, 05 Aug 2020 08:11 AM (IST)
'गयाजी' में कई भाषाओं में की गई है रामायण की रचना
'गयाजी' में कई भाषाओं में की गई है रामायण की रचना

गया। सनातन धर्म में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस का बड़ा महत्व है, जिसमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्श व सारे कार्यो का सिलसिलेवार वर्णन है। लेकिन 'गयाजी' भी एक मात्र ऐसा शहर है, जहां सबसे अधिक रामायण ग्रंथों की रचना हुई है। यहां चार भाषाओं में सात रामायण की रचना कई लोगों ने की है। ये सातों रामायण की रचना वर्ष 1890 से लेकर 1907 के बीच की गई है।

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शहर के जाने-माने वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ. रामनिरंजन परिमलेंदु कहते हैं, गया में सबसे अधिक सात रामायण ग्रंथों की रचना की गई है। जिसमें देवनागरी लिपि से लेकर ब्रज भाषा में की गई रचना शामिल है। उन्होंने कहा, आल्हा रामायण ग्रंथ की रचना पं. चतुर्भुज मिश्र ने की थी, जिसमें उल्लिखित है, 'गया धाम है बास हमारो, जहां पर चरण विष्णु भगवान। नाम चतुर्भुज मेरा जानो और नित फल्गु का स्नान।

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कब-कब हुई यहां रामायण ग्रंथ की रचना :

श्रीललित रामायण ग्रंथ की रचना वर्ष 1883 में हुई थी। इसकी रचना गुरारू प्रखंड के अहियापुर गांव निवासी पं. हरिनाथ पाठक ने किया है। रामायण देवनागरी भाषा में है। 1890 में आल्हा रामायण ग्रंथ की रचना हुई, जिसमें 924 पृष्ठों में सात कांड समाहित हैं, जिसकी रचना शहर के निवासी पं. चतुर्भुज मिश्र ने वीर रस में की है। 1900 में कुंडलिया व रोला रामायण ग्रंथ की रचना हुई। कुंडलिया की रचना नवादा के तुंगी निवासी पं. बाल गोविंद मिश्र ने ब्रज भाषा में की है। रोला रामायण ग्रंथ की रचना पत्तन लाल सुशील ने की है, जो दाउदनगर के निवासी थे। वहीं, मदांदसार रामायण ग्रंथ की रचना 1907 में पं. कांदुलाल गुर्दा ने ब्रज भाषा में की है। मनोहर रामायण ग्रंथ की रचना पं. चतुर्भुज मिश्र ने की है। वहीं, नि‌र्द्वल्द रामायण ग्रंथ की रचना कविश्वर शिव प्रसाद ने की है।

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बाजार में नहीं उपलब्ध हैं रामायण :

उपरोक्त सभी रामायण ग्रंथ बाजार की दुकानों और शहर के पुस्तकालय में भी उपलब्ध नहीं हैं। वयोवृद्ध साहित्यकार कहते हैं, उक्त सभी रामायण ग्रंथ की प्रति वाराणसी स्थित प्राचीन पुस्तकालय नागरी प्रचारिणी सभा में उपलब्ध है।


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