दुर्गापुर से 408 किमी. पैदल चलकर गया पहुंचे पंकज के चेहरे पर दिखा सुकून
कोरोना संकट ने कइयों की मुश्किलें वाकई में बढ़ा रखी है। लॉकडाउन में अपने परिवार से दूर रहे लोगों में अपनों से मिलने की जिद्दोजहद साफ देखी जा रही है। दुर्गापुर पश्चिम बंगाल से 408 किलोमीटर पैदल यात्रा कर गया पहुंचे पटना सिटी के पंकज यादव की कहानी भी कुछ इसी तरह की है। रामशिला मंदिर के पास चिलचिलाती धूप में पंकज अपने दाएं कंधे पर एक जैकेट रखे हुए आगे बढ़े जा रहे हैं।
गया । कोरोना संकट ने कइयों की मुश्किलें वाकई में बढ़ा रखी है। लॉकडाउन में अपने परिवार से दूर रहे लोगों में अपनों से मिलने की जिद्दोजहद साफ देखी जा रही है। दुर्गापुर पश्चिम बंगाल से 408 किलोमीटर पैदल यात्रा कर गया पहुंचे पटना सिटी के पंकज यादव की कहानी भी कुछ इसी तरह की है। रामशिला मंदिर के पास चिलचिलाती धूप में पंकज अपने दाएं कंधे पर एक जैकेट रखे हुए आगे बढ़े जा रहे हैं। थोड़ी दूर चलकर एक पेड़ की छाया में रुकते हैं। बगल में दो लोग अपनी परेशानी बयां कर रहे हैं। तभी पंकज तपाक से कह गए- भइया मैं तो दुर्गापुर से पैदल आ रहा हूं। वहां एक-दो युवाओं ने मुड़कर देखा। पंकज के चेहरे से टपकते पसीने व पैदल चलने से थका हारा बदन सबकुछ बयां कर रहा था। बगल के अधेड़ कृष्णा प्रसाद ने युवक को चाय-पानी दिया। पीकर एक लंबी सांस ली। पंकज ने खुद को संभालते हुए कृष्णा जी को शुक्रिया बोला। युवक ने बताया कि वह पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में टीएमटी सरिया की कंपनी में बतौर मजदूर काम करता है। लॉकडाउन हुआ नहीं कि कंपनी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। दिहाड़ी मजदूरी से गुजारा चलता है। लिहाजा, वहां से निकलने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। उन्होंने बड़े इत्मिनान से कहा कि 25 मार्च को दुर्गापुर से चला हूं। 31 मार्च की रात तक पटना पहुंच जाऊंगा। बिहार की धरती पर जब पैर पड़ा तो बड़ा सुकून महसूस हुआ। बिहार के लोगों ने जगह-जगह बड़ी सहायता की। खाना-पीना व सोने की जगह दी।
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बाराचट्टी हाइवे पर चोरों ने लूट लिए बैग, मोबाइल भी छीन लिए
लॉकडाउन में पैदल चलना पड़ रहा है। ऐसी कभी कल्पना नहीं की थी। पटना सिटी के पंकज की पैदल यात्रा में कई पड़ाव आए। एक पड़ाव ऐसा आया जब उनका बैग व मोबाइल तक चोरों ने ले लिए। गया जिले के बाराचट्टी हाइवे के पास वे रुके थे। तभी गफलत से किसी चोर ने उनके बैग पर हाथ मार दिए थे। बैग में कपड़े, पानी का बोतल, मोबाइल व कुछ रुपये थे। सब चोर ले भागे। पंकज को इसका अफसोस है, लेकिन कहते हैं परिवार के पास पहुंच जाऊं यह ज्यादा जरूरी है।
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दिनभर करते पैदल यात्रा, शाम ढलते ही सुरक्षित जगह तलाश कर सो जाते
पैदल यात्रा में जहां थक जाते हैं वहीं आराम कर लेते हैं। शाम सात बजे के बाद कहीं सुरक्षित स्थान देख स्थानीय की मदद से रात गुजार लेते हैं। सूर्य की पहली रौशनी मंजिल भरे रास्तों पर ही मिलती है।