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बुद्ध की ज्ञानभूमि पर पिंडदान की है परंपरा

कर्मकांड -पितृपक्ष में महाबोधि मंदिर धर्मारण्य मातंगवापी में पिंडदान और सरस्वती में तर्पण का है विधान ---------- -महाबोधि मंदिर में पिंडदान और बोधिवृक्ष के दर्शन-नमन की भी प्रथा हजारों की तादाद में श्रद्धालु मंदिर परिसर में करते हैं पिंडदान ------------ जागरण संवाददाता बोधगया

By JagranEdited By: Published: Fri, 13 Sep 2019 01:43 AM (IST)Updated: Fri, 13 Sep 2019 01:43 AM (IST)
बुद्ध की ज्ञानभूमि पर पिंडदान की है परंपरा
बुद्ध की ज्ञानभूमि पर पिंडदान की है परंपरा

गया । कालातर से चली आ रही तर्पण और पिंडदान की परंपरा आज भी ज्ञानभूमि पर जीवंत है। पितृपक्ष के तृतीया तिथि को बोधगया के विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर सहित आसपास के धर्मारण्य, मातंगवापी पिंडवेदी पर पिंडदान और अंत: सलिला सरस्वती (मुहाने नदी) में तर्पण करने का विधान है। इसी कर्मकांड के निमित यहां श्रद्धालु पहुंचते हैं।

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महाबोधि मंदिर : सनातन मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार के रूप में माने जाते हैं। इस कारण से महाबोधि मंदिर में पिंडदान और बोधिवृक्ष का दर्शन-नमन की भी प्रथा है। हजारों की तादाद में श्रद्धालु मंदिर परिसर में अपने पूर्वजों की मोक्ष की कामना को लेकर पिंडदान करते हैं। महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति द्वारा इसके लिए मंदिर के दक्षिणी दिशा में स्थित मुचलिंद सरोवर के समीप व्यवस्था की जाती है। पूरे पितृपक्ष के दौरान मंदिर वैदिक मंत्रोच्चार से गुंजायमान रहता है। मंदिर के भिक्षु प्रभारी भंते चालिंदा बताते हैं कि पिंडदान के बाद उक्त स्थल की साफ-सफाई के लिए अतिरिक्त सफाईकर्मियों की तैनाती की गई है। ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव किया जाता है।

धर्मारण्य : धर्मारण्य के पुजारी जर्नादन पांडेय कहते हैं, पितृपक्ष के तृतीया तिथि को बोधगया के पिंडवेदियों पर पिंडदान व तर्पण का विधान है। त्रयोदशी तिथि को त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है। यही कारण है कि आस्थावान सनातन धर्मावलंबी श्रद्धालु प्रेतबाधा से मुक्ति हेतु पिंडदान कर अष्टकमल आकार के कूप में नारियल छोड़कर अपनी आस्था को पूरी करते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार महाभारत युद्ध के दौरान जाने-अंजाने में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पाश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर यज्ञ और पिंडदान किया था।

मातंगवापी : मातंगवापी वेदी पर पिंडदान, तर्पण और मातंगी सरोवर का दर्शन कर्म महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसका उल्लेख अग्नि पुराण में भी है। यहां पिंडदान के पश्चात मातंगेश रूपी शिव पर पिंड सामग्री छोड़ कर कर्मकांड का इतिश्री कर दिया जाता है।

सरस्वती वेदी : कोलाहल से दूर बिल्कुल शांत वातावरण में मुहाने तट पर स्थित है सरस्वती वेदी। यह वेदी बोधगया के पिंडवेदियों पर पिंडदान के विधान शुरू करने से पहले तर्पण के लिए ख्यात है। लेकिन पहुंच मार्ग सुलभ न होने के कारण इक्का-दुक्का पिंडदानी ही यहां पहुंच पाते हैं। इस स्थल पर होने वाले तर्पण को पंडा-पुजारी धर्मारण्य वेदी के समीप संपन्न कराते हैं।


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