आयुष चिकित्सक के हवाले ओपीडी व आपात सेवा
पेज- फोटो 40 -रेफरल अस्पताल बनकर रह गया परैया सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र -फार्मासिस्ट की जगह एएनएम के जिम्मे दवा वितरण का काम ----------- 01 चिकित्सक से अस्पताल में छह दिन ओपीडी व चौबीस घंटे इमरजेंसी सेवा संभव नहीं -26 एएनएम अस्पताल में कार्यरत जीएनएम एक भी नहीं होने से मरीजों को हो रही परेशानी ----------- संवाद सूत्र परैया
गया । लोगों को सस्ता एवं समुचित इलाज उपलब्ध कराने के लिए अस्पतालों को डॉक्टर सहित अन्य सुविधाओं से लैस करने का प्रयास जिले में नाकाफी साबित हो रहा है। चिकित्सकों की भारी कमी से जूझ रहे अस्पतालों से गंभीर रूप से बीमार लोगों को रेफर करने की जैसे परंपरा बन गई है। स्थिति यह है कि अस्पतालों में स्वीकृत पदों से आधी भी चिकित्सकों की संख्या नहीं है।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र परैया का हाल भी कुछ ऐसा ही है। यहां भवन तो बना है पर संसाधनों का घोर अभाव है। आपातकालीन सेवा के नाम पर रेफर करना ही एकमात्र विकल्प है। अस्पताल में सिर्फ दो एमबीबीएस डॉक्टर हैं, जिनमें से एक चिकित्सा प्रभारी डॉ. ललन प्रसाद सिंह व दूसरा डॉ. गुलजार अहमद हैं। चिकित्सा प्रभारी प्राय: बैठक व प्रशिक्षण को लेकर जिला मुख्यालय में रहते हैं। ऐसे में महज एक चिकित्सक से अस्पताल में छह दिन ओपीडी व चौबीस घंटे इमरजेंसी सेवा संभव नहीं है।
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ओपीडी व आपात सेवा आयुष चिकित्सक के भरोसे
दंत चिकित्सक डॉ. प्रफुल कुमार अस्पताल में पदस्थापित हैं। वहीं, उपस्वास्थ्य केंद्र सोलरा में आयुष चिकित्सक डॉ. कृष्ण कुमार नीरज हैं, जो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ओपीडी व चौबीस घंटे आपातकालीन सेवा देखते हैं।
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आयुष चिकित्सक करते
एलोपैथ का इलाज
दीगर की बात यह है कि आखिर आयुष चिकित्सक कैसे एलोपैथिक इलाज करते हैं। दंत चिकित्सक डॉ. प्रफुल कुमार से भी आपातकालीन सेवा ली जाती है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम में दो चिकित्सक डॉ. विनोद कुमार व डॉ. एजाज अहमद हैं। जिनका काम आगनबाड़ी केंद्र व विद्यालयों में जाकर बच्चों के स्वास्थ्य की जाच करना है।
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बीस वर्षो से ड्रेसर का पद रिक्त
अस्पताल में 26 एएनएम कार्यरत हैं, जबकि जीएनएम एक भी नहीं है। एकमात्र फार्मासिस्ट की उपलब्धि के कारण दवा वितरण का कार्य एएनएम द्वारा किया जाता है। अस्पताल में ड्रेसर नहीं है। बीस वर्षो से यह पद रिक्त है। इसके कारण रोगियों को ड्रेसिंग की सेवा नहीं मिलने की समस्या है।
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महिला चिकित्सक नहीं
अस्पताल को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में उन्नत किया किया। सेवा बढ़ने की जगह सिर्फ भवन व उसके कमरों की संख्या बढ़ी। अस्पताल में प्रतिमाह औसतन 80 प्रसव होते हैं। ऐसी स्थिति में यहा किसी महिला चिकित्सक या सर्जन की अनुपलब्धता से ग्रामीण परेशान हैं। कई बार प्रसव से जुड़ा मामला इतना गंभीर हो जाता है कि जच्चा और बच्चा दोनों के जान पर बन आती है।
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एंटी रेबीज इंजेक्शन का अभाव
ग्रामीण क्षेत्र में जहरीले साप, कुत्ते व कीटों के काटने की शिकायत बहुतायत रहती है। कुत्ते काटने के बाद एंटी रेबिज का इंजेक्शन नहीं मिल पाता है। फार्मासिस्ट अनिल कुमार कहते हैं कि जितनी आवश्यकता यहा दर्शाई जाती है, उतनी मात्रा में इंजेक्शन उपलब्ध नहीं हो पाते। इसके कारण ग्रामीण निराश लौट जाते हैं। पारासिटामोल की दवा भी बहुत कम मात्रा में मिलती है।