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बौद्ध धर्म मानवीय संबंधों को देता बल

गया । भगवान बुद्ध की 2563 वीं त्रिविध जयंती को लेकर गुरुवार से दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 May 2019 07:59 PM (IST)Updated: Thu, 16 May 2019 07:59 PM (IST)
बौद्ध धर्म मानवीय संबंधों को देता बल

गया । भगवान बुद्ध की 2563 वीं त्रिविध जयंती को लेकर गुरुवार से दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का शुभारंभ किया गया। महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के अनागारिक धम्मपाल सभागार में आयोजित सेमिनार का उद्घाटन प्रमंडलीय आयुक्त टीएन बिंदेश्वरी व जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने संयुक्त रूप से धम्मदीप प्रज्ज्वलित कर किया। बौद्ध भिक्षुओं ने सूत्त पाठ किया।

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'बौद्ध धर्म : अंतर धार्मिक सौहार्द का संदेशवाहक' विषय पर आयोजित सेमिनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रमंडलीय आयुक्त ने कहा कि बौद्ध धर्म मानव धर्म है, जो मानवीय संबंधों पर मूलत: बल देता है। इसके संदेश सार्वकालिक हैं। बौद्ध धर्म मानव कल्याण हेतु वैज्ञानिक व तार्किक आधार युक्त है।

जिलाधिकारी ने कहा कि बौद्ध धर्म मूल रूप से अहिसा, शांति, भाईचारा तथा अंतर धार्मिक सौहार्द की शिक्षा देता है। सेमिनार का विषय आज के परिपेक्ष्य में अत्यंत प्रासंगिक है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि ऋषिकेश शरण व मुंगेर विवि के प्रतिकुलपति प्रो. कुसुम कुमारी ने बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत शील, समाधि, प्रज्ञा के साथ करूणा, मैत्री, मुदिता और उपेक्षा के ब्रह्माविहार को अंतर धार्मिक संबंध के विकास एवं प्रसरण में अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए उसके व्यवहारिक पक्ष पर बल दिया। उद्घाटन सत्र में विषय प्रवेश बीटीएमसी सचिव एन. दोरजे ने किया।

वहीं, सेमिनार के पहले दिन के सत्र में ब्रोक विश्वविद्यालय कनाडा की प्रो. शालिनी सिंह ने पर्यटन की दृष्टि से बोधगया व अन्य बौद्ध स्थलों को अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भारतीय संस्कृति, धर्म तथा लोगों के व्यवहार पर अपने अनुभव प्रकट किए। उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध के उपदेश यदि हमारे व्यवहार में झलकते हैं तो वह न केवल देशहित में होगा। इससे संपूर्ण मानवतावादी विश्व प्रभावित होगा। ईसाई मिशनरी के प्रचारक व बौद्ध विद्वान डॉ. सुजाई लारेंस ने कहा कि बौद्ध धर्म हमें अंधविश्वास से उपजी पीड़ा से मुक्ति दिलाता है। मविवि के प्रो. मुकेश कुमार, मुंगेर विवि के प्रो. भवेश चन्द्र पांडेय, भिक्षु वरा संबोधि थेरा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। दोनों सत्रों की अध्यक्षता क्रमश: ऋषिकेश शरण व केंद्रीय तिब्बती अध्यय संस्थान के विद्वान लामा ग्यात्सेन नामडोल ने की।

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