पितरों को तृप्ते करने गयाजी आने लगे पुत्र
-आज से 8 अक्टूबर तक चलेगा पितृपक्ष मेला -देश-विदेश से आएंगे श्रद्धालु करेंगे पिंडदान -----------
-आज से 8 अक्टूबर तक चलेगा पितृपक्ष मेला
-देश-विदेश से आएंगे श्रद्धालु करेंगे पिंडदान
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जागरण संवददाता, गया
गयाजी के पावन धरा पर पूर्वजों के नियमित होने वाला पिंडदान शुरु हो रहा है। पितरों को तृप्त करने की कामना लेकर पुत्र गयाजी आने लगे हैं। पंचकोशी गयाजी में फैले पिंडवेदियों का रंग-रोगन कार्य पूरा कर लिया गया है, जहां पिंडदान का कर्मकांड संपन्न किया जाएगा। जिला प्रशासन, संवास सदन समिति, नगर निगम सहित गयापाल पंडा समाज प्रतिवर्ष होने वाले इस पितृपर्व को मनाने को तैयार है। जिस पर्व में विचरण करती आत्मा अपने पुत्र से जलांजलि के लिए गया की धरा पर अपरोक्ष रुप से वास करती है। यानि इस पर्व में इहलोक से लेकर परलोक तक के तार जुड़ जाते हैं और इसे ही हम पितरों के महासंगम का नाम देते हुए गयाजी को नमन करते हैं।
गयाजी की महत्ता:
छोटी-छोटी पर्वत शृंखलाओं से घिरी और फल्गु तीर्थ के तीर पर बसा छोटा सा यह नगर प्राचीन काल से अपनी महत्ता के लिए प्रसिद्ध रहा है। पुराणों और सनातन धर्म की पुस्तकों में गया का आदरपूर्वक नाम लिया जाता है। चूंकि गयाजी में जीवंत मानव संस्कृति के साथ-साथ इसके गोद में वेदी है। जहां पूर्वजों के नियमित पिंड दिया जाता है। गया की पहचान पिंडदान से जुड़ी है। भगवान श्रीराम से लेकर चैतन्य महाप्रभु और कई देवी देवताओं के गयाजी के भ्रमण और पिंडदान का उल्लेख पुस्तकों में वर्णित है। यह एक महान तीर्थ है।
पिंडदान को गयाजी :
पुराणों के पन्नों में यह दर्ज है कि जंगल पहाड़ के बीच में बसे इस धार्मिक नगरी में कभी 365 वेदियां थी। एक वेदी पर एक पिंडदान करने का विधान था। समय के साथ-साथ यहां की 365 वेदियां लुप्त होती गई। अब 45 वेदियों पर पिंडदान और नौ स्थानों पर तर्पण का कर्मकांड किया जाता है। यह स्थान पूरी तरह आदिकाल के देवी देवता और ऋषि मुनियों के नाम पर बने हैं। जहां अब 15 से 17 दिनों के बीच कर्मकांड को पूरा कर लिया जाता है।
गयाजी के तीर्थपुरोहित :
गयाजी में पिंडदान और तर्पण के कर्मकांड को पूरा कराने का एकमात्र अधिकार गयापाल पंडा को जाता है। इनकी अनुमति से कर्मकांड का शुभांरभ होता है और सुफल देने के बाद श्रद्धालु आशीर्वाद पा लेते हैं। इनकी गणना आम गयावासी से अलग है। कभी 1484 घर का इनका एक अलग ठाठ था। चार फाटक के बीच में इनके आवासन थे, जहां से इनकी पुरोहित चलती थी और यजमान इनके बताए मार्ग पर चलकर कर्मकांड पूरा करते थे। आज भी अंदर गया के उन गलियों में इनके आवाज बुलंद होते हैं, जहां से विष्णु के दरबार तक इनकी सीधी पहुंच होती है। संख्या बल में कमी आई है। लेकिन पंडागिरि इनका मुख्य पेशा है और ये अपने यजमान का आज भी पूरा-पूरा ख्याल रखते हैं।
पितृपक्ष महासंगम 2018:
गया के 54 पिंडवेदियों व तर्पण स्थल पर 23 सिंतबर से कर्मकांड प्रारंभ होगा, जो 8 अक्टूबर तक चलेगा। विष्णुपद सहित सभी पिंडवेदियों पर तैयारी पूरी कर ली गई है। पिंडवेदियों तक पहुंचने के लिए जिला प्रशासन ने व्यवस्था की है। स्कूल, धर्मशाला, होटल और पंडा जी के घरों में श्रद्धालुओं के आवासन की व्यवस्था प्रशासन ने हरी झंडी दे दी है। वायुयान, रेल और सड़क मार्ग से आने वाले यात्रियों को बेहतर सुविधा मिल सके, उसके लिए गयापाल पंडा सहित जिला प्रशासन पूरी तरह गंभीर है। इस बार लगभग दस से पंद्रह लाख तीर्थयात्रियों के गया आगमन की संभावना है।