तीर्थो का प्राण मोक्षभूमि गयाजी
पेज - फोटो पहले की अपेक्षा काफी बदलाव गयापाल पंडा माखनलाल बारीक ने कहा कि पहले की अपेक्षा पितृ
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पहले की अपेक्षा काफी बदलाव
गयापाल पंडा माखनलाल बारीक ने कहा कि पहले की अपेक्षा पितृपक्ष मेले में काफी बदलाव आया है। सिर्फ कर्मकांड जो पांच दशक पहले भी ही होता था आज भी ऐसे ही हो रहा है। कर्मकांड में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है। उस समय पिंडदानी 52 स्थानों पर कर्मकांड एवं 30 स्थानों पर तर्पण करते थे, जो आज नहीं हो रहा है। क्योंकि जिला प्रशासन की अनदेखी के कारण कई पिंडवेदी एवं घाट विलुप्त हो गए। अगर इस तरह से जिला प्रशासन के रवैया रहा तो और कई पिंडवेदी विलुप्त हो जाएंगे। पहले भी पिंडदानी एक दिन, तीन दिन, सात दिन एवं 15 दिनों को श्रद्धाकर्म करते थे। राजा महाराज पितृपक्ष के समय गयाजी आते थे। एक दिन में ही देवघाट, विष्णुपद एवं अक्षयवट में कर्मकांड कर लौट जाते थे। उस समय श्रद्धालु होटल में नहीं रहते थे। पंडाजी के घरों में ही जमीन में चटाई बिछा कर सोते थे। रोशनी के नाम पर एक दीया दिया जाता था। साथ ही पिंडदानी फल्गु नदी में स्नान करते थे और कुंए का पानी पीकर रहते थे। आज सबकुछ बदल गया। पिंडदानी होटल में वातानकुलित कमरों में रहकर पिंडदान करते हैं।
उन्होंने कहा कि मेला क्षेत्र में नगर पालिका द्वारा रोशन को लेकर लालटेन लगा दिया जाता था, जिससे पूरी रात रोशनी मिलती थी। साथ कूड़े का उठाव बैलगाड़ी से किया जाता था। पूरा काम ईमानदारी से होता था, जो आज नहीं हो रहा है।
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पिंडदानियों की सेवा
करना पुनीत कार्य
पितृपक्ष मेले में आने वाले पिंडदानी मानव नहीं, महामानव होते हैं। इनकी सेवा करना हमलोगों का कर्तव्य है। इससे बड़ा कोई भी पुनीत कार्य नहीं है। पिंडदानियों को किसी तरह की असुविधा नहीं हो उसके लिए प्रशासन ही शहरवासियों का भी ध्यान रहने का जरूरत है।
डॉ. संकेत नारायण सिंह
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सनातन धर्म में काफी महत्व
सनातन धर्म में पितृपक्ष का काफी महत्व है। इसी आस्था को लेकर पितृपक्ष में देश-विदेश से पिंडदानी गयाजी आते हैं। फिर प्रशासन की ओर से लापरवाही बरती जा रही है। मेला शुरू होने अब कुछ दिन शेष हैं। सफाई, पेयजल और बिजली की व्यवस्था का अभाव देखा जा रहा है। अगर इसी तरह की व्यवस्था रही तो देश-विदेश में मेले का गलत संदेश जाएगा।
डॉ. रामनिरंजन परिमलेन्दु