शहीदों के स्मारक पर फूल चढ़ाने नहीं आए लोग
गया। बाराचट्टी के गोखुला नदी तट के समीप प्रखंड मुख्यालय से सटे अमर शहीद नीलाबंर-पीताबंर भोक्ता के
गया। बाराचट्टी के गोखुला नदी तट के समीप प्रखंड मुख्यालय से सटे अमर शहीद नीलाबंर-पीताबंर भोक्ता के स्मारक पर भोक्ता समाज व कमेटी के लोग ही श्रद्धांजलि देने पहुंचे। जिसने आजादी के लिए जान दी हो, उसकी मजार पर तो मेला लगना चाहिए था। श्रद्धा के दो फूल चढ़ाने भी कोई नहीं आया। भोक्ता समाज के लोगों ने ही याद किया।
28 मार्च 1859 को अंग्रेजों ने 35 वर्ष की आयु में दोनों को सूली पर लटका दिया था। इन दोनों के शहादत दिवस पर कोई नेता या जनप्रतिनिधि नहीं पहुंचे। न ही कोई प्रशासनिक अधिकारी आए।
पलामू (अब झारखंड में) के इन दो वीरों ने आजादी की लड़ाई में कुर्बानी दी थी। 1857 के प्रथम स्वंतत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में इन दोनों की अहम भूमिका रही थी।
कर्नल डाल्टन ने धोखे से एक भोज में दोनों को गिरफ्तार किया था। मुकदमा चलने के बाद 28 मार्च 1859 को फांसी दे दी गई।
खरवार समाज के लोगों ने चंदा से यहां उनका स्मारक बनवाया। बांस से घेराबंदी की, पर अब वह भी कमजोर हो गया है। प्रखंड में खरवार भोक्ता जाति की आबादी सात हजार के आसपास है। वे वीर शहीद नीलांबर-पीतांबर को अपना पूर्वज बताते हैं। समाज के लोगों ने बारह सदस्यों की कमेटी बनाई है। 2015 में शहीद स्मारक के उद्घाटन के मौके पर सांसद हरि मांझी आए थे। उन्होंने स्मारक स्थल की घेराबंदी का आश्वासन दिया था, लेकिन यह अब तक पूरी नहीं हुई।
-----------------
'हमारे समाज के लोगों को कोई तरजीह नहीं दी जाती है। गरीबी व बेरोजगारी के कारण हम जंगल व पहाड़ के बीच रहते हैं। शिक्षा और विकास से भी यह जाति काफी दूर है। शहीदों के स्मारक के लिए भी कुछ नहीं किया गया।
हरेन्द्र सिंह भोक्ता, सचिव, नीलांबर-पीतांबर स्मारक समिति, बाराचट्टी