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एमएस कॉलेज के सुनहरे अतीत में अब सन्नाटे का साहित्य

मोतिहार। मोतिहारी का ऐतिहासिक मुंशी सिंह महाविद्यालय किसी जमाने में संयुक्त चंपारण (पूर्वी-पश्चिमी)

By JagranEdited By: Published: Mon, 11 Mar 2019 06:02 AM (IST)Updated: Mon, 11 Mar 2019 06:02 AM (IST)
एमएस कॉलेज के सुनहरे अतीत में अब सन्नाटे का साहित्य

मोतिहार। मोतिहारी का ऐतिहासिक मुंशी सिंह महाविद्यालय किसी जमाने में संयुक्त चंपारण (पूर्वी-पश्चिमी) के लिए उच्च शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र था। इंटर से लेकर स्नातकोत्तर स्तर तक की पढ़ाई की व्यवस्था इस महाविद्यालय में है। बाबा साहब भीमराव आंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय की इस अंगीभूत इकाई का विद्यार्थी होना छात्रों के लिए कभी गर्व का विषय रहा है। यहां की शैक्षणिक व्यवस्था मिसाल थी। लेकिन, व्यवस्था पर बदहाली का साया ऐसा पड़ा कि आज कक्षा संचालन इतिहास की बात बनकर रह गई है। कॉलेज के समृद्ध प्रयोगशालाओं के उपकरण धूल फांक रहे हैं। होता है तो बस नामांकन और ली जाती है परीक्षा। कॉलेज के सुनहरे अतीत में अब सन्नाटे का साहित्य ही नजर आ रहा है। बंद पड़े क्लास रूम व प्रयोगशालाएं

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इस कॉलेज में कभी कक्षाओं में विद्यार्थियों का कोलाहल हुआ करता था। प्राध्यापकों की कड़क आवाज गूंजती थी। मगर समय के साथ सब कुछ बदल गया। कक्षाएं सूनी पड़ी हैं। यहां की प्रयोगशालाएं काफी समृद्ध हुआ करती थीं। मगर अब तो यह बीते दिनों बात है। आज परिस्थितियां बदल गई हैं। शिक्षा का तानाबाना ध्वस्त-सा हो गया है। कॉलेज में सन्नाटा है। अगर थोड़े-बहुत विद्यार्थी नजर भी आते हैं तो सिर्फ नामांकन या परीक्षा से संबंधित कार्यो के लिए। आज विद्यार्थियों की सरगर्मी कॉलेज से सरक कर कोचिग परिसर में पहुंच गई है। हालांकि, उच्च शिक्षा के लिए ग्रामीण इलाकों में यह विकल्प भी बच्चों के सामने नहीं है। जैसे-तैसे पढ़ाई का उपक्रम कर रहे हैं। 125 की जगह मात्र 28 शिक्षक बात जब क्लास की हो रही है तब यह जानना भी जरूरी है कि एमएस कॉलेज विश्वविद्यालय की एक अंगीभूत इकाई है। इसके लिए शिक्षक की व्यवस्था करना विश्वविद्यालय का दायित्व है, जिसका सीधा जुड़ाव सरकार से है। अब सवाल यह उठता है कि शिक्षा व्यवस्था को ठीक करने के लिए रोज-रोज किए जा रहे दावे के आलोक में यह स्थिति क्या किसी को नहीं दिख रही है। बानगी देखिए, एमएस कॉलेज में कला, विज्ञान एवं वाणिज्य संकायों के लिए कुल 125 शिक्षकों की जगह है। इसके एवज में इस महाविद्यालय में मात्र 28 शिक्षक तैनात हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि वाणिज्य संकाय में तो एक भी शिक्षक नहीं हैं। इस संकाय में इंटर से लेकर स्नातक स्तर तक नामांकन भी होते हैं, परीक्षा भी ली जाती है और विद्यार्थी पास भी करते हैं। कैसे होता है यह सब कुछ। वहीं, राजनीतिक विज्ञान, उर्दू एवं पर्सियन, बंगला, बॉटनी विभाग में भी शिक्षक नहीं हैं। जबकि अंग्रेजी, जूलॉजी, केमिस्ट्री एवं फिलोसफी विभाग एक-एक शिक्षकों के भरोसे चल रहा है। कुछ ऐसे शिक्षक भी हैं जो दो-चार महीने में सेवानिवृत होने वाले हैं। अब ऐसी स्थिति में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की परिकल्पना भी की जा सकती है क्या? कॉलेज का गौरवशाली अतीत वर्ष 1945 में स्थापित यह महाविद्यालय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए जाना जाता रहा है। भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह एवं बिहार सरकार के पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार इसी महाविद्यालय के छात्र रहे हैं। यहीं के छात्र रहे राजेंद प्रसाद मिश्र एवं बीरेंद्र नाथ पांडेय क्रमश: बिहार एवं मगध विश्वविद्यालय के कुलपति रहे हैं। तीन-तीन बार राष्ट्रपति से गेलेन्ट्री अवार्ड प्राप्त करने वाले लेफ्टिनेंट कर्नल वीके सिंह, दिल्ली पुलिस में डीजीपी रहे आमोद कंठ, भारतीय सेना में प्रथम महिला पारा ट्रूपर जयंती मुखर्जी, एनसीसी के कमांडिग ऑफिसर कर्नल जेएन कुमार ने भी यहीं से शिक्षा ग्रहण की है। इनके अलावा चिकित्सा एवं इंजीनियरिग के क्षेत्र में भी अनेक छात्रों ने नाम कमाया है। इस महाविद्यालय में इग्नू एवं नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी का केंद्र भी है। एनसीसी एवं एनएसएस की गतिविधियां भी संचालित होती है। अगर संचालित नहीं होती हैं तो बस कक्षाएं। प्राचार्य डॉ. ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि हमारा प्रयास बेहतरी की दिशा में जारी है। कक्षाओं का संचालन सुचारू हो इसकी हम व्यवस्था कर रहे हैं। विश्वविद्यालय स्तर पर शिक्षकों की व्यवस्था की जा रही है। सेंट्रल हॉल को विकसित किया गया है। परिसर वाई-फाई की सुविधा से जुड़ा हुआ है। कॉलेज की व्यवस्था को ऑनलाइन कर दिया गया है। लाइब्रेरी को डिजिटल बनाया जा रहा है। सौंदर्यीकरण पर भी जोर दिया जा रहा है।


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