शहादत का महीना होता है मुहर्रम
मोतिहारी। मुहर्रम शहादत का महीना है। इसका महत्व इस्लामिक धर्म में अधिक है। यह इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है।
मोतिहारी। मुहर्रम शहादत का महीना है। इसका महत्व इस्लामिक धर्म में अधिक है। यह इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है। इस महीने में खास तौर से करबला के शहीदों को याद किया जाता हैं और उनकी शहादत से इबारत हासिल की जाती है। यह पवित्र महीना बकरीद के बाद आता है। इस्लाम में चार महीनों को महान माना जाता है। मुफ्ती रेयाज अहमद ने बताया कि हजरत हुसैन के शहादत को याद कर लोग उससे सबक हासिल करते है। दुनिया के अंदर अमन-शांति कायम रखने की हर मुमकीन कोशिश करते है। पैगंबर ने मुहर्रम के महीने में शांति कायम हो और हर दिन इस्लाम की तबलीग व इशाअत आसानी से हो इसलिए मक्का छोड़ मदीना जाने का इरादा किया। यजीद मुस्लमानों का शहंशाह बनना चाहता था, जिसके लिये उन्होंने आवाम में खौफ फैलाना शुरू किया। सभी को अपने सामने गुलाम बनाने के लिए उन्हें यातनाएं देना शुरू किया। यहां अमन, शांति और हक की सरबुलंदी के लिये हमारे पैगंबर के नवासे जाने लगे, तो रास्ते में ही उन्हें यजीद के साथियों ने उन्हें घेर लिया। लड़ाई छह दिनों तक चली। इसबीच दसवें दिन जब इमाम नमाज अदा कर रहे थे तब दुश्मनों ने उन्हें धोखे से मार दिया। मुफ्ती अहमद ने कहा कि मुहर्रम को पाक महीना माना जाता है। इस दिन को शिद्दत के साथ सभी इस्लामिक धर्म को मानने वाले मनाते है। इसे इबादत का महीना भी कहते है। हरजत मुहम्मद के अनुसार इन दिनों रोजा रखने से किये गए बुरे कर्मो का नाश होता है और अल्लाह की रहम होती है साथ ही सभी गुनाह माफ होते है।
बांस से बनाई जाती है ताजिया
शेराजुल हक ने बताया कि ताजिया बांस से बनाई जाती है। उसे झांकियों के जैसे सजाई जाती है। इसमें इमाम हुसैन की कब्र को बनाकर उसे शान से दफानने जाते है। इसे ही शहीदों को श्रद्धांजलि देना कहते है। इसमें मातम भी मनाया जाता है, लेकिन फक्र के साथ शहीदों को याद किया जाता है। यह ताजिया मुहर्रम के दस दिनों के बाद ग्यारहवें दिन निकाला जाता है। इसमें मेला भी सजता है। सभी इस्लामिक लोग इसमें शामिल होते है और पूर्वजों की कुर्बानी की गाथा ताजियों के जरिये आवाम को बताई जाती है।