ममता का गला घोंट नवजात को सड़क पर फेंका
मोतिहारी सदर अस्पताल में प्रवेश के साथ ही एक बड़ा स्लोगन नजर आता है.. बेटी को मारोगे तो बहू कहां से लाओगे।
मोतिहारी। मोतिहारी सदर अस्पताल में प्रवेश के साथ ही एक बड़ा स्लोगन नजर आता है.. बेटी को मारोगे तो बहू कहां से लाओगे। स्त्री भ्रूण हत्या के खिलाफ आम लोगों के लिए यह संदेश है। मगर भ्रूण की बात छोड़िए, नौ माह तक मां के गर्भ में पलने के बाद पैदा हुई बेटी को यदि सड़क पर फेंक दिया जाए तो इसे आप क्या कहेंगे। जी हां, कुछ ऐसी ही बात सोमवार को सामने आई, जब एक एंबुलेंस चालक ने सड़क के किनारे फेंकी गई नवजात को सदर अस्पताल पहुंचाया। उसका दोष सिर्फ इतना था कि वह बेटी थी। मानवीय संवेदनाओं को तार-तार करते हुए ममता को भी शर्मशार कर दिया गया था। चिकित्सीय जांच में पाया गया कि सड़क किनारे खुले में फेंके जाने के कारण बच्ची संक्रमण का शिकार हो गई थी। आनन-फानन में उसे एसएनसीयू पहुंचाया गया। इस बात की जानकारी मिलते ही सिविल सर्जन डॉ. बीके सिंह भी एसएनसीयू पहुंचे। उसे देखने के बाद उन्होंने इलाज की जानकारी ली। कई निर्देश भी दिए। इस संबंध में एसएनसीयू के प्रभारी डॉ. कुमार अमृतांशु ने बताया कि नवजात अब बेहतर स्थिति में है। उसका इलाज जारी है। चाइल्ड लाइन को भी सूचित कर दिया गया है। वहां तैनात ए ग्रेड नर्स भी बच्ची की देखभाल में जुटी नजर आई।
कोटवा के समीप सड़क किनारे रोती बिलखती नवजात को पड़ा देख ग्रामीणों ने उसे उठाया। इसी बीच मोतिहारी की ओर जा रहे एक एंबुलेंस पर उनकी नजर पड़ी। ग्रामीणों ने अस्पताल पहुंचाने के आग्रह के साथ नवजात को चालक के हवाले कर दिया। इस प्रकार वह एसएनसीयू तक पहुंची और यह कहावत भी चरितार्थ हुई कि जाको राखे साईयां मार सके न कोय..। गनीमत है कि किसी कुत्ते या अन्य जानवर की नजर नहीं पड़ी थी। एसएनसीयू प्रभारी ने बताया कि करीब तीन दिन पहले भी शहर के किसी हिस्से में फेंकी गई एक और नवजात को कुछ लोगों ने अस्पताल लाया था। कुत्ते उसके शरीर को काफी नुकसान पहुंचा चुके थे। लाख कोशिश के बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका। अब सवाल यह उठता है कि आज जब हम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे के साथ विकास की सीढि़यां चढ़ रहे हैं, तब ऐसी घटनाएं हमें कहां लाकर खड़ी कर देती हैं?