बेरहम वक्त है 'मालिक', शहर संभाल लीजिए
दरभंगा। बारिशों का मौसम है। धरती और आकाश मिलकर हरियाली का सृजन कर रहे हैं। लेकि
दरभंगा। बारिशों का मौसम है। धरती और आकाश मिलकर हरियाली का सृजन कर रहे हैं। लेकिन, इस बार जो सावन है इसके साथ चैन की नींद तो है, पर कोरोना के संक्रमण जैसी बेकली भी। अपना शहर (दरभंगा) पूरी दुनिया में राजसी ठाठ के लिए मशहूर है। इन सबके बीच राजतंत्र के बाद का जो सरकारी तंत्र है उसने सावन के रंग में भंग घोल दिया। शहर परेशान है अपने अतीत की रक्षा को लेकर। आदमी तंगहाल है वर्तमान को लेकर। यकीन नहीं होता पर है हकीकत। यहां हाकिमों के बीच जो गिनती के लोग हैं, उन्होंने पूरी व्यवस्था को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है। कोरोना संक्रमण के खतरे ने सावन की हवा में भय घोल दिया है। जिले के 'मालिक' ने इस भय को कम करने के लिए नगर के हाकिम को साफ कह दिया है- शहर साफ रखिए, सैनिटाइजेशन कराइए। लेकिन, जिले के मालिक की ओर से इसकी बाबत लगातार जारी हो रहे निर्देश के बाद भी शहर के हाकिम के रहते शहर की पहचान गंदगी से है। 'मालिक' एक दिन निकलिए। अपनी तीसरी आंख खोलिए दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
आदमी की भीड़ पर गंदगी से संक्रमण का खतरा
हमें खुद संभलकर रहना होगा। वरना सरकारी सिस्टम ..! शहर हमारा, लोग हमारे। सो, चिता भी हमारी होनी चाहिए। हमें ही स्वयं और अपनों की प्राण रक्षा करनी है। वक्त पहले जैसा नहीं रहा। अब हवा में भी संक्रमण का खतरा है। फिर, हम क्यों भीड़ लगाएं। हम क्यों अपने घर की गंदगी सड़क पर फेंक आएं। हम क्यों नहीं अपने घरों के आसपास की छोटी-बड़ी नालियों को स्वयं की तत्परता से साफ रहने दें। हम क्यों नहीं जिले के 'मालिक' को शहर की वास्तविक जानकारी दें। 'मालिक' तो शहर के हाकिम को लगातार कह रहे हैं- संक्रमण का वक्त है। शहर को साफ रखिए। सफाई कराइए। नियम के अनुरूप दुकानें संचालित हो, इसके लिए टीम बना दी है। पर, निचले पायदान के हाकिम ..! ऐसे में जन जिम्मेदारी है कि आदमी भीड़ न बने।
संभलने के वक्त में यह लापरवाही जानलेवा है
कोरोना से जंग जीतने की जिद में जनता जागरूक है। खुद की जान बचाने की जिद में खूबसूरती का त्याग कर मास्क लगाना शुरू कर दिया। लेकिन, अब भी एक बड़ी आबादी चेहरा दिखाने के चक्कर में अपनी सुरक्षा भूल गई। शहर के पॉश इलाके की बात - श्यामा माई मंदिर से लेकर लहेरियासराय तक जानेवाली मुख्य सड़क के कई हिस्सों में नालों की खुदाई हुई। सड़क पर बालू। नाले की गीली मिट्टी है। उपर से लोगों के घर व व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से निकले कचरे के ढेर में कई जगहों पर मेडिकल कचरा। कचरा सुबह दस बजे के बाद बीच सड़क से उठाया जाता है। सड़क पर जाम और लोगों की भीड़ जमा हो जाती है। लेकिन, शहरी इलाके के हाकिम लोगों की नजर में यह दृश्य कभी आता नहीं। ताजा हालात इस बात की इजाजत नहीं देते कि साहेब इसे नजरअंदाज करें। शहर के हाकिम और उनके बाबुओं की महिमा
सालों से सुनते आए हैं नगर निगम की कहानी। सफाई का दावा और जन सुविधा देने की गारंटी जैसी बातें। न जाने कितने साल अभी और सरकार के मुलाजिम और जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के किस्से कहानियों में तब्दील होंगे। सो, जनता ने भी मान लिया है कि इस बार भी सावन भगवान भरोसे ही है। बात कोरोना की हो या उससे बचाव के लिए शहरी साफ-सफाई की। वक्त न जाने कहां ले जाए। लेकिन, शहर के हाकिम कर्मियों को काम देते हैं। उन्हें उनके बाबू और अधीनस्थ रिपोर्ट देते हैं। रोज जिले के मालिक को भी सूचना जाती है। लेकिन शहर के हाकिम और उनके बाबुओं की महिमा तो देखिए। जनता गंदगी में पिस रही है। जलजमाव घर की दहलीज कब लांघ जाए कहना कठिन है। अब तो बस उस घड़ी का इंतजार है कि जिले के मालिक शहर को तीसरी आंख से देखें ..!