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जल प्रबंधन के अभाव का नतीजा है भूमिगत जल का गिरता स्तर : डॉ. अर¨वद

पोखरों-तालाबों से भरे शहर में भूमिगत जल का गिरता स्तर कई सवाल खड़े करता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 30 Jan 2019 12:22 AM (IST)Updated: Wed, 30 Jan 2019 12:22 AM (IST)
जल प्रबंधन के अभाव का नतीजा है भूमिगत जल का गिरता स्तर : डॉ. अर¨वद
जल प्रबंधन के अभाव का नतीजा है भूमिगत जल का गिरता स्तर : डॉ. अर¨वद

दरभंगा । पोखरों-तालाबों से भरे शहर में भूमिगत जल का गिरता स्तर कई सवाल खड़े करता है। इससे साफ जाहिर होता है कि यहां जल-प्रबंधन नहीं किया गया। पानी का सवाल मानव जीवन से जुड़ा हुआ है। जल नहीं तो मानव के लिए कल नहीं। भविष्य की ¨चता किए बगैर इसका अंधाधुंध दोहन हो रहा है। शहर ही नहीं पूरे जिले में जल संकट की समस्या खड़ी हो गई। बड़ी-बड़ी इमारतें तो बन गई है पर कहीं वाटर ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। नगर निगम वाटर टैक्स तो लेता है पर किसी घर में वाटर मीटर नहीं है। मनमाने ढ़ंग से पानी का इस्तेमाल हो रहा है। एमआरएम कॉलेज में भूमिगत जल का घटता स्तर ¨चता का विषय पर आयोजित सेमिनार में प्रधानाचार्य डॉ. अर¨वद कुमार झा ने यह बातें कही। उन्होंने कहा कि भूमिगत जल की अनुपलब्धता राष्ट्रीय समस्या है, पर जल की प्रचुरता वाले क्षेत्र में यह समस्या मानवीय लापरवाही को दर्शाता है। भूमिगत जल रिचार्ज होने का एकमात्र साधन वर्षा जल है, लेकिन, कंक्रीट के महलों में कैंपस भी कंक्रीट युक्त है और पोखर-तालाब गाद से भरे हुए है। नतीजतन, जमीन के भीतर वर्षा का पानी नहीं पहुंच रहा है और भूमिगत जल में कमी हो गयी है।

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मनुष्यों ने खड़ी की भूमिगत जल की समस्या :

कॉलेज के आइक्यूएसी समन्वयक डॉ. विवेकानंद झा ने कहा कि धरती के कई अन्य सजीव तो पानी के बगैर रह सकते हैं, लेकिन मनुष्य कुछ घंटों की प्यास भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। भूमिगत जल की समस्या मनुष्यों ने ही खड़ी की है। इसका निदान भी हमें भी तलाशना होगा। प्रभात दास फाउंडेशन व कॉलेज के आईक्यूएसी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सेमिनार में फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने कहा कि भूमिगत जल स्तर बढ़े, इसके उपाय तलाशने होंगे। जल संकट के लिए शहरवासी जिम्मेवार :

अध्यक्षता करते हुए मैथिली विभागाध्यक्ष डॉ. प्रीति झा ने कहा कि शहर की आबादी बढ़ रही है और हर मनुष्य को लगभग 200 लीटर पानी प्रतिदिन चाहिए। इस स्थिति में जल-संकट की स्थिति को समझा जा सकता है। मिथिला जल की समृद्धता के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन, अब यहां न बाढ़ आती है और ना ही वर्षा प्रचुर मात्रा में होती है। अगर होती भी है तो उसका पानी धरती के भीतर समाहित नहीं हो रहा है। इसके जिम्मेवार हम शहरवासी ही हैं। संचालन डॉ. पुतुल झा ने किया। स्वागत व धन्यवाद ज्ञापन अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. चित्रा झा ने किया। प्रतिभागी नीतू ¨सह, श्वेता कुमारी, लाली कुमारी एवं प्रियंका कुमारी ने भी अपने विचार रखें। मौके पर कई शिक्षक व छात्राएं मौजूद रहे।


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