गिरते रहे आंखों से आंसू, दुआ के लिए उठे हजारों हाथ
ानिवार की रात शबे-बरात पर्व को लेकर लोग अल्लाह के आगे गिड़गिड़ाते रहे।
दरभंगा। शनिवार की रात शबे-बरात पर्व को लेकर लोग अल्लाह के आगे गिड़गिड़ाते रहे। अपने गुनाहों की बख्शीश मांगते रहे। अपने मृत परिजनों के लिए जन्नत में जगह मांगते रहे। साल भर की समृद्धि की कामना करते रहे। कुरान पढ़ते रहे। नमाज पढ़ते रहे और इस बीच रात का अंधेरा सुबह की सफेदी में कब बदला किसी को पता ही नहीं चला । जब देखा तो सूरज दस्तक देने वाला था। कंपकपाते लब के साथ उठे और अपने-अपने घरों को लौट गए । बीवी पाकर का कब्रिस्तान हो या फिर स्टेशन रोड का वीरान कब्रिस्तान । लोग एक-एक कब्र को देख रहे थे । अगरबत्ती जला रहे थे और इसमें दफन अपने परिजनों के लिए अल्लाह के आगे हाथ उठा कर दुआ मांग रहे थे । कर्बला के पास के मजार पर तथा विश्वविद्यालय परिसर स्थित मजार पर तो लोगों का हुजूम उमड़ा हुआ था । बारह बजे रात का पता ही नहीं चला । इधर जो लोग कब्रिस्तान नहीं जा सके उन्होंने मस्जिदों में डेरा जमाया हुआ था । कोई कुरान का पाठ कर रहा था तो कोई नमाज अदा कर रहा था। हर आदमी की इच्छा थी कि हिसाब किताब की इस रात में उसके लिए साल भर सेहतमंदी, समृद्धि मिले । उसके बाल बच्चों के लिए यह रात बरकत वाली रात बन जाए । मौलाना आफाक अहमद ने कहा कि इस रात के अंतिम पहर में अल्लाह ताला धरती के बहुत नजदीक आकर सदा लगाता है । अपने नेक बंधुओं को बुलाता है। उनसे पूछता है कि बताओ तुम्हें क्या चाहिए । तुम जो भी कुछ मांगोगे वह तुम्हें दिया जाएगा। इसीलिए लोग रात के अंतिम पहर में पूरे मनोयोग से इबादत करते हैं । ताकि उनका अल्लाह उनसे राजी हो जाए और उनकी मांगी गई हर दुआ को कुबूल कर लिया जाए । हालांकि मौलाना की बातों के विपरीत बहुत से उत्साही युबा बाइक पर इस कब्रिस्तान से उस कब्रिस्तान और इस मजार से उस मजार करते रहे ।पटाखे चलाते रहे ।रात की सन्नाटगी को पटाखों की आवाज चीरती रही । कुछ लोगों ने समझा भी रहे थे । लेकिन कोई कहां मानने वाला था। उसे तो बस यह समझ में आ रहा था कि आज की रात शबे बरात है और इस रात को पूरी तरह इंजॉय किया जाए।
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