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जागृत लोकतंत्र के लिए जन-आंदोलन जरूरी : गंगेश मिश्र

दरभंगा। भारत में जन-आंदोलन का लंबा इतिहास रहा है और इससे लोकतंत्र की दशा-दिशा दोनों ही बदली है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 20 Jan 2020 12:55 AM (IST)Updated: Mon, 20 Jan 2020 06:18 AM (IST)
जागृत लोकतंत्र के लिए जन-आंदोलन जरूरी : गंगेश मिश्र

दरभंगा। भारत में जन-आंदोलन का लंबा इतिहास रहा है और इससे लोकतंत्र की दशा-दिशा दोनों ही बदली है। पर टी-20 अर्थात फटाफट क्रिकेट जैसे होने वाले जन-आंदोलन का लाभ आम आदमी तक नहीं पहुंच पा रहा है। बाजार ने सबको प्रभावित किया है और यही कारण है कि समाज का अंतिम आदमी आज भी वहीं खड़ा है जहां वो गांधीजी के युग में थे। आज कई कारणों से आदमी अपने तक सीमित हो गया है, इसलिए जन-आंदोलन को विस्तार नहीं मिल पा रहा। उक्त बातें वरीय पत्रकार गंगेश मिश्र ने कही। भारतीय लोकतंत्र में जन-आंदोलन का महत्व विषय पर आयोजत संगोष्ठी को उन्होंने बतौर मुख्य वक्ता संबोधित करते हुए कहा कि लोगों के पास अखबारों को पढ़ने का समय नहीं है, समाज के हित में सोचने की फुर्सत नहीं है। नतीजनत आंदोलन खड़ा ही नहीं हो पाता है या फिर होता भी है तो उसका अंत जाम लगाने तक रह जाता है। मुख्य अतिथि के रूप में नगर विधायक संजय सरावगी ने कहा कि झूठ के ढ़ेर पर होने वाला जन-आंदोलन करना ताश के पत्तों की तरह होता है। जन-आंदोलन केवल सत्ता के विरूद्ध ही नहीं किया जाता। भारत में जन-आंदोलन, सती-प्रथा, बाल-विवाह समेत समाज की कुरीतियों आदि के लिए भी किया गया, जो काफी सफल रहा। दरभंगा में विकास कार्यो के लिए स्व. रामगोविद गुप्ता ने भी जन-आंदोलनों का सूत्रपात किया था। पत्रकार के साथ-साथ वो लोकतंत्र के वाहक भी थे। सीएम कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. मुश्ताक अहमद ने कहा कि डिमांड की पूर्ति घरों में बैठे-बैठे नहीं होती है और जब किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए लोग सड़क पर उतरते हैं तो जन-आंदोलन होता है। प्रजातंत्र को आंदोलन दशा-दिशा प्रदान करता है। इसलिए आंदोलनों का होना जरूरी है। साहित्य अकादमी दिल्ली के संयोजक डॉ.प्रेम मोहन मिश्र ने कहा कि जन-आंदोलन जब भी होगा तो अपनी छाप छोड़ेगा ही और व्यवस्था में प्रतिवर्तन भी होगा। जन-आंदोलनों का होना स्वस्थ्य प्रजातंत्र की निशानी है। पूर्व विधान पार्षद डॉ. विनोद कुमार चैधरी ने कहा कि जन चेतना के बगैर कोई भी आंदोलन सफल नहीं हो सकता। लेखक डॉ. रीता सिंह ने कहा कि लोकतंत्र में जन-आंदोलन के बगैर किसी व्यवस्था का कायम होना असंभव है। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ. हरिनारायण सिंह ने कहा कि लोगों के प्रोफेशनल होने से प्रतिवर्तन की धार बदल रही है। लोग हर जगह अपना हित ढूढ़ने लगे हैं। इसलिए वर्तमान समय में जन-आंदोलन असफल हो जाता है। संगोष्ठी का संचालन डॉ. एडीएन सिंह ने किया। जबकि अतिथियों का स्वागत पूर्व निगम पार्षद प्रदीप कुमार गुप्ता और धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार गुप्ता ने किया। संगोष्ठी में शिक्षक अरूण कुमार चैधरी, प्रो. अजीत कुमार चैधरी, पूर्व उपमहापौर प्रबोध कुमार सिन्हा, विष्णु कुमार झा, कैलाश प्रसाद बरोलिया, श्रवण कुमार झुनझुनवाला, राजेश कुमार बोहरा, राज कुमार मारीवाला, मुकेश कुमार झा, सिद्धुमल आदि शामिल थे।

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