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मगन आश्रम में बैठते थे आजादी के दीवाने, बनाते थे योजनाएं

दरभंगा। हायाघाट प्रखंड के मझौलिया गांव के एक हिस्से में स्थापित मगन आश्रम। यहां आने के साथ

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Jan 2021 12:45 AM (IST)Updated: Thu, 21 Jan 2021 12:45 AM (IST)
मगन आश्रम में बैठते थे आजादी के दीवाने, बनाते थे योजनाएं

दरभंगा। हायाघाट प्रखंड के मझौलिया गांव के एक हिस्से में स्थापित मगन आश्रम। यहां आने के साथ मन को आजादी की बातें जीवंतता देती हैं। दिल से एक ही आवाज आती है- जिस मगन आश्रम से देश की स्वतंत्रता के लिए योजनाएं बनी और जिस आश्रम ने लोगों में देशभक्ति का जोश भरा उसे आश्रम के विकास के लिए भी मगन होना चाहिए। लेकिन, स्वर्णिम अतीत पर बदहाल वर्तमान भारी है। पिछले एक दशक से आश्रम बंद है। इसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। हालांकि स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती व पुण्यतिथि पर कुछ लोग यहां जरूर जमा होते हैं। फिर इतिहास को अगले अवसर तक के लिए भूल जाते हैं।

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आजादी संग कई सामाजिक मूल्यों की रक्षा को चला अभियान

तब देश में आजादी की मांग करना मुश्किल था। इस बीच रघुनाथपुर के जमींदार राजेंद्र प्रसाद मिश्र के पुत्र स्वतंत्रता सेनानी रामनंदन मिश्र की अगुआई में उक्त आश्रम स्थापित की गई। यहां से उन्होंने पर्दा प्रथा के खिलाफ बिगुल फूंका। इस आंदोलन में उनकी पत्नी राजकिशोरी भी शामिल हुईं। रामनंदन राष्ट्रपिता के अहिसक स्वराज्य आंदोलन में कूद पड़े। इसी दौरान गांधी जी ने अपने भतीजे मगनलाल गांधी को यहां भेजा। लेकिन, यहां आने के क्रम में 22 अपैल 1928 को पटना में ही उनका निधन हो गया। फिर उनकी याद में स्वतंत्रता सेनानी पंडित रामनंदन मिश्र व अन्य ने मिलकर वर्ष 1929 में मझौलिया गांव में मगन आश्रम की स्थापना की।

जगदीश चौधरी ने दी जमीन

स्थानीय लोग बताते हैं- आश्रम के लिए मझौलिया गांव के ही जगदीश चौधरी ने अपनी सारी जमीन दे दी। इसमें गांव के अन्य लोगों ने भी सहयोग किया। जगदीश चौधरी, पिपरा गांव के बृजबिहारी कुंवर, मझौलिया के श्रीनारायण चौधरी, नीरस चौधरी सहित नौ लोग अपने परिवार के साथ इस आश्रम में रहने लगे। और देश की आजादी के साथ पर्दा प्रथा, छुआछूत के खिलाफ भी आंदोलन का केंद्र इसी आश्रम को बनाया।

युवाओं के देश प्रेम को देखते हुए पहुंचे थे सरदार पटेल समेत कई दिग्गज

इस आश्रम से स्थानीय युवकों के देश प्रेम की भावना को देखते हुए गांधीजी ने वर्ष 1929 में सरदार वल्लभ भाई पटेल को भेजा। बाद में डॉ राजेंद्र प्रसाद, जेबी कृपलानी, अरुणा अशरफ अली, सुचेता कृपलानी, विमला फारुखी, जया प्रभा देवी समेत स्वतंत्रता के कई सारथी यहां आए।व हीं मगन गांधी की बेटी राधा गांधी व दुर्गा बाई भी यहां आई। महात्मा गांधी के आह्वान पर चरखा काटने का अभियान भी चला। लोग कहते हैं इस आश्रम का विकास कर इसके इतिहास को इसकी दीवाल पर लिखा जाना चाहिए।

---------- बोले स्वतंत्रता सेनानी - राजनीतिक उपेक्षा के कारण खंडहर में तब्दील हो रहा भवन

स्वतंत्रता सेनानी सुरेंद्र झा का कहना है कि दुखद है कि आजादी की लड़ाई का यह इतिहास प्रशासनिक व राजनीतिक उपेक्षा के कारण खंडहर होता जा रहा है। इसका जीर्णोद्धार होना चाहिए। केंद्र व राज्य सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए।

आश्रम को देखनेवाला कोई नहीं

ग्रामीण अमरनाथ चौधरी बताते हैं कि आजादी का गढ़ रहे ऐतिहासिक मगन आश्रम जहां एक समय में देश के कोने-कोने से लोग यहां पहुंचते थे। आजादी की रूप-रेखा तय की जाती थी। जंग का शंखनाद होता था। लेकिन, आज आश्रम जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। लेकिन, इसको देखनेवाला कोई नहीं है।

कोट ऐतिहासिक मगन आश्रम के जीर्णोद्धार के लिए जो भी कदम उठाना पड़ेगा। उससे पीछे नहीं हटेंगे। इस दिशा में काम करेंगे।

डॉ. रामचंद्र प्रसाद

विधायक, हायाघाट। -


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