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बंद दरवाजे, टूटी सड़क और उड़ता धूल संभाल दीजिए

दरभंगा। दरभंगा के इतिहास में कई चीजें अहम हैं। उनमें से अहम है ललित नारायण मिथिला विश्ववि

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 11:55 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 11:55 PM (IST)
बंद दरवाजे, टूटी सड़क और उड़ता धूल संभाल दीजिए

दरभंगा। दरभंगा के इतिहास में कई चीजें अहम हैं। उनमें से अहम है ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय। अहम है कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा। ये सिर्फ शैक्षणिक संस्थान ही नहीं बल्कि दरभंगा की शान है। इन संस्थानों को गौरव प्राप्त दरभंगा की रियासत की अमूल्य चीजों को संजोने का। लेकिन, इन संस्थान के चारों तरफ खुलनेवाले बंद दरवाजे लोगों को दर्द देते हैं। कई बार आदमी को दरवाजों पर झूलते देखा गया। लेकिन, न जाने कौन सी वजह है कि ये दरवाजे बंद हैं। बंद भी ऐसे नहीं। बंदी का आलम यह है कि दरवाजे जंग खा रहे हैं। उपर से परिसर की सड़कों से उड़नेवाला धूल इनकी पहचान मिटाने को आतुर है। सो, अब बंद दरवाजे टूटी सड़क और उड़ता धूल संभालना जरूरी है। वरना एक दिन वक्त स्वर्णिम इतिहास पर भारी बदहाल वर्तमान का हिसाब करेगा। ये वक्त नहीं आसान बस इतना समझ लीजिए

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एक तो सर्दियों का मौसम है। दूजा कामकाजी लोग हैं। तीसरा कोरोना का खतरा भी। भले ही यह कम हो गया। दवा भी जिले में पहुंच गई है। टीकाकरण भी शुरू हो गया है। लेकिन, यह क्या जिनके नाम सूचीबद्ध थे उनमें से कई लोग नहीं पहुंच रहे। वो टीका से वंचित हो रहे हैं। बावजूद इसके कि वो रोगियों की सेवा के फ्रंटलाइनर हैं। उन्हें कभी भी संक्रमण हो सकता है। सो, यह भूल न कीजिए। टीका लगवा लीजिए। कोरोना से बचाव के नियमों को अपना लीजिए। इसने जब भी दस्तक दी जहां भी दी चुपके से चोरी से। सो, यकीन मानिए बिना आदत बदले रोग नहीं जाता। आदत बदलनी होगी। कोरोना के नियमों का अभी पालन करना होगा। बिना मास्क घर से बाहर नहीं निकलना होगा। समारोह में जाना होगा तो मास्क लगाकर। बिना मास्क के जाना अब भी खतरनाक होगा। ये जो सरकारी अलाव है

कड़ाके ठंड और सरकारी अलाव। दोनों एक दूसरे को हराने में लगे हैं। आम आदमी की जुबान पर बात एक है- सरकार अलाव का सिस्टम फेल है। शाम होती तो हाकिम के निकलने और जांच के डर से कर्मी चंद स्थानों पर अलाव जला लेते हैं। फिर इंतजार करते हैं साहेब के सोने का वक्त होता है और वो चले जाते हैं। गिनती कर जलाई गई लकड़ी चंद घंटों में राख में तब्दील हो जाती है। शहर का स्टेशन रोड और स्थानीय जंक्शन का प्लेटफार्म सरकारी व्यवस्था की पोल खोल जाता है। जंक्शन पर एक कंबल और चादर में लिपट कर लोग पूरी रात काट देते हैं। जब बहुत ज्यादा सर्दी लगती है तो नसीब को कोसते हैं और सड़क किनारे फेंके गए कुट और कागज जलाकर कांपते हाथ सेंक लेते हैं। आफत तो यह कि सरकारी स्तर पर अलाव जलाने के निर्देशों को लागू करने में जिले के हाकिम लगे हुए हैं। रियासत गढ़ने चला फिर से पुरानी कहानी

जब राजशाही थी तब भी इस रियासत में जनता की बात थी। जनसेवा का भाव था। बदलते वक्त में भले ही देश में राजतंत्र समाप्त हो गया। प्रजातंत्र की चल रही है। सो, इस रियासत के वर्तमान वारिस जनतंत्र में जनहित की परिकल्पना को पूरा करने में लगे हैं। बात दरभंगा राज घराने की हो तो फिर जनसेवा इसकी नींव में मिलती है। यहां के अंतिम महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह ने जिस सेवा परंपरा की शुरुआत की। वह परंपरा एक बार फिर आरंभ हो रही है। धीरे-धीरे ही सही लेकिन युवा कुमार कपिलेश्वर सिंह खानदान की परंपरा को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे है। इस बार गणतंत्र दिवस समारोह भी जिले में महाराजाधिराज की याद दिलाएगा। लंबे अंतराल के बाद दरभंगा राज के किले पर तिरंगा लहराएगा। संकल्प इस बात का लिया जाएगा कि राज का सेवा भाव अमिट रहा है, इसे और आगे बढ़ाया जाएगा।

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