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झोले में संचालित कई खेल संगठन, खिलाड़ियों का भविष्य अंधकारमय

दरभंगा। जिले में खेल को बढ़ावा के नाम पर कई संगठन संचालित है। खिलाड़ियों को तराशने और उनका करियार बनाने की घोषणाओं के बावजूद कुछ खेल संगठन को छोड़ दे तो अधिकांश संगठन कागजों पर भी संचालित है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 09 Nov 2021 12:31 AM (IST)Updated: Tue, 09 Nov 2021 12:31 AM (IST)
झोले में संचालित कई खेल संगठन, खिलाड़ियों का भविष्य अंधकारमय

दरभंगा। जिले में खेल को बढ़ावा के नाम पर कई संगठन संचालित है। खिलाड़ियों को तराशने और उनका करियार बनाने की घोषणाओं के बावजूद कुछ खेल संगठन को छोड़ दे तो अधिकांश संगठन कागजों पर भी संचालित है। साल में कोई भी खेल गतिविधि नहीं होती। यह हाल पिछले कई वर्षों से देखने को मिल रहा है। यहां तक की संगठन के नाम पर केवल अपनी वाहवाही लेने की कवायद होती है। संगठनों में इन दिनों खेल के बजाए राजनीति देखने को मिल रही है। विभिन्न खेल विधियों से संबंधित कई खिलाड़ियों को यह तक नहीं पता कि संबंधित खेल के अध्यक्ष व सचिव कौन है। संगठन का कार्यालय कहां है। वे दर-दर की ठोकरें खाते रहते है, लेकिन शायद ही उन्हीं पता चल पाता है। यूं तो खेल के नाम पर जिले में क्रिकेट, फुटबॉल, कबड्डी को छोड़ दे तो अधिकांश खेल संगठन की कोई गतिविधि सालों से नहीं हुई है। नाम के लिए जिले में एथेलेटिक्स, खो-खो, बॉल बैंडमिटन, टेबुल-टेनिस, हॉकी, जूडो-कराटे, बॉक्सिग सहित कई खेल संगठन सक्रिय है। लेकिन, सालाना खेल गतिविधियां शायद ही होती है। यहीं कारण हैं कि इन खेल विधियों के खिलाड़ियों का करियर चौपट हो रहा है। क्रिकेट और फुटबॉल की बात करें तो इनकी गतिविधि होती है, लेकिन मानकों पर खेल मैदान नहीं होने के कारण खिलाड़ियों का मनोबल छोटा हो जाता है। राष्ट्रीय मानकों के अनरुप खेल गतिविधियां संचालित होने में कठिनाई होती है। जिले के लहेरियासराय में एकमात्र इंडोर स्टेडियम है, जहां बैंडमिटन कोट बना हुआ है। लेकिन, उसकी जर्जरता के कारण खिलाड़ी उससे दूर होते जा रहे है। बगल में ही लॉन टेनिस का ग्रांउड है, जहां जिले के आला अधिकार सहित कुछ खेल प्रेमी रोजाना पसीना बहाते है। बाकी खेल गतिविधियों के लिए ना ही मानकों पर स्टेडियम की व्यवस्था है, ना ही कोच की। ट्रैक इवेंट के लिए वर्षों से बंद है। जिला में खेल और खिलाड़ियों का एकमात्र सहारा ललित नारायण मिथिला विवि है। विश्वविद्यालय स्तर पर प्रतिवर्ष कई खेल प्रतियोगिताएं होती है। इन प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलता है। वहीं, जिला खेल संघ के तत्वावधान में वर्ष में एक बार क्रिकेट प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। खेल संघ से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि दो वर्ष पूर्व तक खेल सर्टिफिकेट को बेचा जाता था। दरअसल खेल कोटा से कई संस्थानों में आसानी से छात्रों का नामांकन हो जाता है। कई विभागों में खेल कोटे से नियुक्ति किए जाने का प्रावधान भी है। ---------

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कहते है क्रीड़ा पदाधिकारी

ललित नारायण मिथिला विवि के खेल पदाधिकारी प्रो. अजय नाथ झा बतातें है कि जिला में पहले खेल प्रतियोगिताएं आयोजित होती थी। लेकिन, धीरे-धीरे यह परंपरा खत्म होती चली गई। खिलाड़ियों का रूझान भी कम होता चला गया। संसाधन के अभाव में कई खिलाड़ी बाहर चले गए। स्कूलों में खेल गतिविधि बंद होने अब खिलाड़ी नहीं मिलते है।पहले विभिन्न खेलों से जुड़े खिलाड़ी खेल संघ के सदस्य हुआ करते थे। खेल से उनका लगाव हुआ करता था। अब, जिनको खेल से कोई मतलब नहीं है, उस तरह के लोग विभिन्न खेल संघ के उच्च पदों पर विराजमान है।

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कहते है जिला खेल संघ के सचिव

जिला खेल संघ के सचिव जितेंद्र सिंह ने बताया कि जिले में लगभग सभी खेलों का अपना संघ है। लेकिन, दुर्भाग्य से अधिकांश खेल संघ ना के बराबर गतिविधि संचालित करते है। संघ के कई पदाधिकारी खेल गतिविधियों में दिलचस्पी नहीं ले रहे है। यही कारण हैं कि जिले के कई खिलाड़ी यहां की बजाए दूसरे राज्यों से खेलने को विवश है। --------


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