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गांव में जीवन चलने वाला नहीं, कमाने के लिए बाहर जाना ही होगा

दरभंगा। कोरोना वायरस के संक्रमण से देशवासियों को बचाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने देश भर में 31 मई तक के लिए लॉकडाउन की घोषणा की है। लॉकडाउन का असर तो हर एक व्यक्ति पर पड़ा है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 27 May 2020 12:08 AM (IST)Updated: Wed, 27 May 2020 06:11 AM (IST)
गांव में जीवन चलने वाला नहीं, 
कमाने के लिए बाहर जाना ही होगा
गांव में जीवन चलने वाला नहीं, कमाने के लिए बाहर जाना ही होगा

दरभंगा। कोरोना वायरस के संक्रमण से देशवासियों को बचाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने देश भर में 31 मई तक के लिए लॉकडाउन की घोषणा की है। लॉकडाउन का असर तो हर एक व्यक्ति पर पड़ा है। लेकिन, लॉकडाउन से सबसे ज्यादा पीड़ित प्रवासी मजदूर हुए हैं। मध्यम वर्गीय प्रवासियों के पास इतनी राशि तो रहती है, जिससे नौकरी जाने पर भी वे दो-तीन माह आराम से गुजारा कर सकें। लेकिन, प्रवासी मजदूरों के पास बैंक में नाम मात्र के रुपये ही जमा होते हैं। मजदूरों का जीवन तो नौकरी पर ही आधारित रहता है। अगर, उनको रोजाना कामकाज नहीं मिले, तो जाहिर है उसके सामने भुखमरी की समस्या पैदा हो जाएगी। यही समस्या लॉकडाउन ने प्रवासी श्रमिकों के सामने खड़ी कर दी है। लॉकडाउन के कारण नौकरी चली गई, तो उसके सामने भुखमरी की समस्या पैदा हो गई है, तो अपना जान बचाने के लिए अपने गांव लौट आए। लेकिन, अब रोजी-रोटी की चिता भी सता रही है। बात भी लाजिमी है कि गांवों में भी उसके पास करने के लिए कुछ है नहीं। न उसके पास जमीन है जिसपर खेती कर सके, न खुद के रोजगार करने के लिए उसके पास रुपये जमा है और गांव में कामकाज मिलना मुश्किल है। केवटी प्रखंड में अब ऐसे कई मजदूर हैं जो लॉकडाउन हटने का इंतजार कर रहे हैं। ताकि, शहर जाकर कामकाज करें और जीवन-यापन सही सलामत सुचारु रूप से चला सकें। कोलकाता में किराए के मकान में सपरिवार रहकर ऑटो चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले बरिऔल गांव के बैद्यनाथ झा ने अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा कि लॉकडाउन में वहां पर काम-धंधा बंद पड़ गया। कोई सहारा नहीं था। अपना घर, अपना घर होता है। किसी तरह अपना गांव आ गए। लेकिन, अब जीवन चलाने की चिता हो रही है। गांव में ही रहकर क्या करेंगे, ना जमीन है, ना ही कोई साधन है, जिसके बदौलत हम यहां पर जीवन-यापन कर सकते हैं। हम इंतजार कर रहे है कि जब लॉकडाउन हटे और स्थिति सामान्य होते ही कोलकाता लौटकर फिर से वहां कामकाज करें। गांव में जमीन के नाम पर बैद्यनाथ के पास केवल 10 धूर जमीन में बना मकान है। उसका एक भाई भी है। माता इंदिरा देवी व पिता देवचंद्र झा, दोनों अभी जीवित है। पत्नी सोनी, पुत्र विवेक व विक्की व पुत्री परी फिलहाल अभी कोलकाता में ही है। पत्नी व पुत्र व पुत्री की चिता भी उन्हें सता रही है।

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