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समाज के बदलते स्वरूप का चित्रण करते रहें साहित्यकार

साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। इसलिए हर युग में साहित्यकारों की तरफ समाज की निगाह लगी रहती है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 04 Sep 2018 12:13 AM (IST)Updated: Tue, 04 Sep 2018 12:13 AM (IST)
समाज के बदलते स्वरूप का चित्रण करते रहें साहित्यकार

दरभंगा। साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। इसलिए हर युग में साहित्यकारों की तरफ समाज की निगाह लगी रहती है। आज भी बदलते समाज के स्वरूप का सही चित्रण साहित्यकारों का दायित्व है। साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के विशेष पदाधिकारी देवेंद्र कुमार देवेश ये बातें ने कही। वे सीएम कॉलेज में अकादमी की ओर से आयोजित उर्दू कविता पाठ के उदघाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अकादमी पूरे देश में सभी भाषाओं से संबंधित इस प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन करती है। इस शहर में पहली बार उर्दू काव्य पाठ का आयोजन किया गया था। प्रधानाचार्य डॉ. मुश्ताक अहमद ने कहा कि आज देश में जिस तरह का वातावरण बन रहा है ऐसे समय में कवियों और साहित्यकारों की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। वे अपनी कविताओं, कहानियों एवं लेखों के माध्यम से समाज में फैल रही अनेक प्रकार की नफरत और कुरीतियों के विरुद्ध लामबंद हों। उन्होंने साहित्य अकादमी के प्रति आभार व्यक्त किया कि मिथिलांचल में पहली बार उर्दू का कार्यक्रम आयोजित हुआ है। उर्दू के 5 कवियों जिनमें प्रो. शाकिर खलीक, डॉ. जमाल ओवैसी, निदा आरफी, डॉ. आफताब अशरफ और खून चंदनपटवी के साथ डॉ. मुश्ताक अहमद ने कविता पाठ किए। साहित्य प्रेमियों को देर तक उर्दू गजल के जादू में बांधे रखा। इस कवि गोष्ठी में उर्दू के अतिरिक्त ¨हदी, मैथिली के भी कवि एवं साहित्यकार शामिल थे। उनमें प्रो. प्रेम मोहन मिश्रा, डॉ. वीणा ठाकुर, डॉ. चंद्रभानु प्रसाद ¨सह, प्रो. विद्यानाथ झा, डॉ. नरेंद्र, डॉ. अमरकांत कुंवर, रफीक अंजुम, हैदर वारसी, डॉ. एहसान आलम, डॉ. मो. बदरूद्दीन, प्रो. विश्वनाथ झा, डॉ. सुरेंद्र गांई आदि प्रमुख थे।

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है कठिन बहुत यारों रास्ता मुहब्बत का : निदा आरफी के शेर हर कदम पे कांटे हैं हर कदम पे शोले हैं, है कठिन बहुत यारो रास्ता मुहब्बत का पर लोगों ने खूब तालियां बजाकर समर्थन किया। जबकि,डॉ. मुश्ताक अहमद ने वर्तमान परिवेश पर खूबसूरत तंज करते हुआ कहा कि अब तो गुलशन पर भी होता है कफस का धोका, चार सू बैठा है, सैयाद कहां तक जाऊं।

प्रो. शाकिर खलीक ने नई पीढ़ी को साहित्य से जोड़ने के लिए शिक्षण संस्थानों में शैक्षणिक कार्यक्रम पर बल दिया।


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