जालेश्वरी दुर्गा मंदिर
जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर उत्तर पश्चिम स्थित जाले गांव में माता जालेश्वरी मंदिर गांव के पूर्व उत्तर में माता जालेश्वरी विराजमान हैं। माता जालेवार मूल के लोगों की कुलदेवी हैं।
जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर उत्तर पश्चिम स्थित जाले गांव में माता जालेश्वरी मंदिर गांव के पूर्व उत्तर में माता जालेश्वरी विराजमान हैं। माता जालेवार मूल के लोगों की कुलदेवी हैं। पुराण में वर्णित ऋषि याज्ञवल्क्य की आराध्या माता है। माता जल की देवी हैं। इनकी महीम अपरंपार है। जलेबार मूल के मधुवनी, दरभंगा, बेगूसराय, खगड़िया,मुंगेर, लखीसराय, मोकामा, नवादा, बिहारशरीफ, पूर्णिया, सहरसा आदि जिलों में बसे ब्राम्हण एवं भूमिहार समेत अन्य लाखों लोगों की कुलदेवी माता जलेश्वरी हैं।
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इतिहास :
पुरातत्वविदों के अनुसार जालेश्वरी माता की खंडित मूर्ति हजारों वर्ष पुरानी है। वहीं मंदिर 77 वर्ष पुराना है। इसी परिसर में वर्ष 1960 में खपरैल नुमा दुर्गा मंदिर था। यहां 1973 में विशाल मंदिर बनाया गया था। शुरू में फूस का मंदिर बनाकर कर श्रद्धालु माता जालेश्वरी की पूजा अर्चना किया करते थे। माता जालेश्वरी मंदिर का निर्माण पश्चिम बंगाल कोलकाता के नगर सेठ किरोड़ीमल की माता ने मनोकामना पूर्ण पर कराई। उन्होंने मन्दिर निर्माण कराया था
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विशेषता :
जालेवार मूल के लोग माता जालेश्वरी के दर्शन पूजन को सालो भर आते ही रहते हैं। इसी परिसर में वर्ष 1960 से दुर्गा पूजा प्रारम्भ हुई। जो अनवरत जारी है। माता दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण सीतामढ़ी के मूर्तिकार विश्वनाथ कई सालों से लगातार करते आ रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से पूजा-अर्चना के बाद जो कामना की जाती है वह पूरी होती है। शारदीय नवरात्र के अवसर पर मंदिर में विशेष पूजा - अर्चना की जाती है। वैदिक पद्धति से यहां पूजा-अर्चना होती है। संध्या आरती तथा दीप में मां दुर्गा के भक्तों की भारी भीड़ जुटती है।
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माता जालेश्वरी स्थान पर पहुंचने वाले श्रद्धालु कभी खाली हाथ नहीं लौटते हैं। शारदीय नवरात्रा विशेष पूजा होती है। गांव ही नहीं संपूर्ण क्षेत्र व नेपाल से श्रद्धालु माता का खोइछा भरने पहुंचते ही रहते हैं।
- मिथिलेश झा, पुजारी
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माता जलेश्वरी की खंडित प्रतिमा के बगल में प्रत्येक तीन वर्ष में एक देवी की मूर्ति में बढ़ोतरी होती है। सच्चे मन से जो लोग माता के दरबार में आते हैं वे कभी खाली नहीं लौटते। भगवती की महिमा अपरंपार है।
- उपेंद्र कुमार पाठक, भक्त
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