बिहार के दरभंगा में बसा एक 'ओडिशा' मुगलकाल तक प्राचीन है इतिहास, जानिए...
यदि आप दरभंगा जिले में ओडिशा की झलक देखना चाहते हैं तो तारडीह प्रखंड के महथौर गांव आइए। यहां आप ओडिशा की संस्कृति से रूबरू होंगे।
दरभंगा [मुकेश कुमार 'अमन]। यदि आप दरभंगा जिले में ओडिशा की झलक देखना चाहते हैं तो तारडीह प्रखंड के महथौर गांव आइए। यहां आप ओडिशा की संस्कृति से रूबरू होंगे। मुगलकाल में ही ओडिशा से आकर कुछ परिवार दरभंगा में बस गए थे। 1935 में अलग ओडिशा राज्य बनने के बाद भी ये यहीं रह गए। इनकी जीवन शैली में आज भी 'उडिय़ा' है।
बस गया है इनका गांव
महथौर में इनकी आबादी लगभग एक हजार है। अधिकांश लोग सरकारी एवं गैर-सरकारी नौकरियों में हैं। मूलरूप से इनके पूर्वज ग्राम-श्री रामचंद्रपुर, जिला-पुरी, राज्य-ओडिशा के रहने वाले थे। ये उत्तल ब्राह्मण समाज से आते हैं।
लहेरियासराय के पंडासराय में रहते थे पूर्वज
वयोवृद्ध रामचंद्र तिवारी 1971 से 2006 तक पंचायत के मुखिया रहे। कहते हैं कि उनके पूर्वज लगभग दो सौ साल पहले पंडासराय में आकर बसे थे। वहां से ये महथौर आ गए। एक किंवदंती के अनुसार दरभंगा महाराज ने पुत्र प्राप्ति के लिए विशेष अनुष्ठान कराया था। यज्ञ को सफल बनाने के लिए आए पंडितों में ओडिशा से आए ब्राह्मïण भी शामिल थे।
पुत्र रत्न की प्राप्ति होने पर महाराज ने ओडिशा के पंडितों को दान में दरभंगा व मधुबनी के सात मौजे दरभंगा, लहटा, सुहट, उदय, पुतई व राजनगर लक्ष्मीपुर भेंट किएा। 1904 ई. में हुए सर्वे में शंभूनाथ पांडा सहित अन्य के नाम खतियान में दर्ज हैं।