परदेस में रहते तो भूख से मर जाते, इसलिए घर आना जरूरी
दरभंगा। जिले में लगातार प्रवासियों का आना जारी है। कई रिक्शा से तो कई साइकिल पहुंच रहे हैं।
दरभंगा। जिले में लगातार प्रवासियों का आना जारी है। कई रिक्शा से तो कई साइकिल पहुंच रहे हैं। लेकिन, इतने दिनों के बाद भी अधिकांश प्रवासी पैदल घर आने को विवश हैं। समस्तीपुर-दरभंगा मार्ग से रविवार को कई प्रवासी पैदल चलते हुए दिखाई दिए। बेहड़ी थाना के रामभरोस दास, लखन चौधरी, तेतर पंडित, कारी महतो आदि कई ऐसे प्रवासी थे, जिनकी दर्द भरी कहानी द्रवित कर देने वाला था। बताया कि लॉकडाउन के बाद कामकाज ठप हो गया और जेब के पैसे भी खत्म हो गए। ऐसे में कहां से किराया देते और कहां से खाते। थोड़ी-बहुत मदद मिली, लेकिन उससे काम नहीं चला। ट्रेनें बंद, बस भी नहीं। ऐसे में जीवन बचाने के लिए प्रवासियों ने टोली बनाकर पैदल ही घर चल दिए। सफर आसान नहीं था। राह में मुश्किलें थीं। मगर, घर पहुंचने का मन बना लिया था, सो चलते गए और आखिरकार अब अपने जिले तक पहुंच चुके हैं। बताया कि रास्ते में कई वाहनों को रोकने का प्रयास किया, लेकिन कोरोना की वजह से कोई वाहन चालक ने गाड़ी को ब्रेक लगाना मुनासिब नहीं समझा। ऐसी स्थिति में एक कदम आगे बढ़ाते गए। जो थक जाते थे उसे अन्य लोग हौसला दे रहे थे। सड़कों पर ऐसे भी मजदूरों के जत्थे देखने को मिले जिनमें कई मजदूरों के पास पैसे नहीं थे। पेट पालने के लिए शहर गए थे और भूखे ही गांव वापस लौटना पड़ा। यह दर्द जीवन भर याद रखने की बात कही। हालांकि, रास्ते में कई जगहों पर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उन लोगों को भोजन कराया। जिसका बार-बार धन्यवाद दे रहे थे। मजदूरों की हालत देखकर यही लगा कि सरकार का दावा खोखला है। टूटी चप्पल और पांवों में पड़े छाले और भूख से लड़खड़ाती जुबान, मजदूरों की विवशता की कहानी बयां कर रही थी। बावजूद, घर पहुंचने की लालसा बार-बार हिम्मत दे रही थी, जो कहीं रुकने नहीं दे रही थी। कहा परदेस में रहते तो कोरोना से नहीं तो भूख से जरूर मर जाते। इसलिए घर आना जरूरी समझा।
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