रहिजो हमरे गाम से मिली पहचान
जिला समाहरणालय के निर्वाचन विभाग से प्रधान सहायक के पद से अवकाश ग्रहण करने वाले मिथिला की सौंधी मिट्टी के गीतकार डॉ. चंद्रमणि झा की रचना शैली अमरत्व के साथ जुड़ चुकी है।
दरभंगा। जिला समाहरणालय के निर्वाचन विभाग से प्रधान सहायक के पद से अवकाश ग्रहण करने वाले मिथिला की सौंधी मिट्टी के गीतकार डॉ. चंद्रमणि झा की रचना शैली अमरत्व के साथ जुड़ चुकी है। नवादा निवासी चंद्रमणि का गीत से लगाव बचपन से माता सीता देवी एवं पिता राममूर्ति झा के नित्य भजन गाने से हुआ। प्रारंभ में मधुपजी से प्रभावित होकर फिल्मी धुन पर लिखना शुरू किए। फिर गीतकार रबींद्रजी- महेंद्रजी से प्रभावित हो गए। अपनी पहली रचना को वर्ष 1962 में छठी क्लास में गाया। बोल था- भाग-भाग रे चीनी दुष्ट, जगदंबा के देश में घुसमें सौंसे देह में फुटतौ कुष्ट। क्रम चलता रहा तो 1983 में 76 गीतों के संकलन कर रहिजो हमरे गाम नाम से पहली किताब प्रकाशित हुई। इसके हर गीत अमर है। फिर भी मंगलमय दिन आजु हे पाहुन छथि आयल एवं पिया डांरहि पर घैला भसकि गेलई ना जन-जन के जुबान पर अधिकार कर लिया। पोथी के चार संस्करण अभी तक प्रकाशित हो चुके हैं। अब तो चंद्रमणि मिथिला के मुकुटमणि बन चुके हैं।